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Friday, July 4, 2025

"भड़ास : एक अनसुनी चीख़"


 कोई नहीं पढ़ता मेरी लिखी कहानियां

बातें भी मेरी लगती उनको बचकानियां

लहू निचोड़ के स्याही पन्नों पे उतार दी.. 

फिर भी मेहनत मेरी उनको लगती क्यूँ नादानियां? 


कल जब सारा शहर होगा मेरे आगे पीछे..... 

शायद तब मेरी शोहरत देगी उनको परेशानियां

मैं उनको फिर भी नहीं बताऊँगा उनकी हकीकत

मैं भूल नहीं सकता खुदा ने जो की है मेहरबानियां |


आज थोड़ा हालत नाजुक है तो मज़ाक बनाते सब 

मेरी सच्चाई मे भी दिखती है उनको खामियां 

मेरा भी तो है खुदा वक्त़ मेरा भी बदलेगा वो 

मेरी भी तो खुशियों की करता होगा वो निगेहबानियां|


मुझको हुनर दिया है तो पहचान भी दिलाएगा वो 

यूँही नहीं देता वो कलम हाथों मे सबको मरजानियां

आज खुद का ही पेट भर पा रहे हैं भले... 

कल हमारे नाम से लंगर लगेगें शहर मे हानिया |


थोड़ा सब्र कर इतनी जल्दी ना लगा अनुमान 

सफलता के लिए कुर्बान करनी पड़ती है जवानियां 

मैं एक एक कदम बढ़ रहा हूँ अपनी मजिल की ओर 

शोहरत पाने को करनी नहीं कोई बेमानियां||


हमने तो चींटी से सीखा है मेहनत का सलीका 

हमे तनिक विचलित नहीं करती बाज की ऊंची उडानियां 

वो जो तुम आज बेकार समझ के मारते हो ताने मुझे 

कल तुम्हारे बच्चे पढ़ेंगे मेरी कहानियाँ.... ♥️

Sunday, June 19, 2022

पापा


 माँ जग की जननी है तो पापा पालनहार हैं

इस दुनियां मे रब का देखो वो दूजा अवतार हैं


दिन की तपिश मे है तपते रातों की नींद गंवाई है

हर कदम सिखाया चलना मुझमे उनकी परछाई है


बिन पापा अस्तित्व मेरा भी सच है मिट ही जाता

दुनियां की इस भीड़ मे अक्सर मेरा मन भी घबराता


लेकिन मेरे अकेलेपन मे साथ खड़े वो होते हैं 

अपने आराम को गिरवी रखकर वो मेरे सपने संजोते हैं 


पंख बने वो मेरे और मुझको सपनों का आसमान दिया 

पापा ही है जिन्होंने हमको खुशियों का जहान दिया 


रब से मुझको शिकवा नहीं बिन माँगे सबकुछ पाया है

शुक्रिया उस रब का जो इस घर मे मुझे जन्माया है


खुद लिए अब कुछ और मांगू इतना भी खुद गर्ज नहीं

माँ पापा रहे सदा सलामत इससे ज्यादा कुछ अर्ज़ नहीं