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Friday, July 4, 2025

"भड़ास : एक अनसुनी चीख़"


 कोई नहीं पढ़ता मेरी लिखी कहानियां

बातें भी मेरी लगती उनको बचकानियां

लहू निचोड़ के स्याही पन्नों पे उतार दी.. 

फिर भी मेहनत मेरी उनको लगती क्यूँ नादानियां? 


कल जब सारा शहर होगा मेरे आगे पीछे..... 

शायद तब मेरी शोहरत देगी उनको परेशानियां

मैं उनको फिर भी नहीं बताऊँगा उनकी हकीकत

मैं भूल नहीं सकता खुदा ने जो की है मेहरबानियां |


आज थोड़ा हालत नाजुक है तो मज़ाक बनाते सब 

मेरी सच्चाई मे भी दिखती है उनको खामियां 

मेरा भी तो है खुदा वक्त़ मेरा भी बदलेगा वो 

मेरी भी तो खुशियों की करता होगा वो निगेहबानियां|


मुझको हुनर दिया है तो पहचान भी दिलाएगा वो 

यूँही नहीं देता वो कलम हाथों मे सबको मरजानियां

आज खुद का ही पेट भर पा रहे हैं भले... 

कल हमारे नाम से लंगर लगेगें शहर मे हानिया |


थोड़ा सब्र कर इतनी जल्दी ना लगा अनुमान 

सफलता के लिए कुर्बान करनी पड़ती है जवानियां 

मैं एक एक कदम बढ़ रहा हूँ अपनी मजिल की ओर 

शोहरत पाने को करनी नहीं कोई बेमानियां||


हमने तो चींटी से सीखा है मेहनत का सलीका 

हमे तनिक विचलित नहीं करती बाज की ऊंची उडानियां 

वो जो तुम आज बेकार समझ के मारते हो ताने मुझे 

कल तुम्हारे बच्चे पढ़ेंगे मेरी कहानियाँ.... ♥️