Thursday, October 21, 2021

इंसानियत की हत्या..



अभी अभी कुछ क्षण पहले भगवन

एक खिलती कली मुरझाई है 


मां ने जिसे तैयार कर

सुंदर बैग और रिबन से चोटी बनाकर 

हंसती खेलती भेजा था स्कूल

जो दोबारा लौटकर आ ना सकीं घर 


 साथियों से हाथ छुड़ाकर 

 बस चंद कदमों के फासले मे 

 ऐसी पडी नजर शैतान की 

 मूर्छित पडी दरिंदगी का शिकार हो कर 


भगवान, यह आपका न्याय नहीं है

तुझसे भी लाखों शिकवे हैं 

किसी घर की अमर रोशनी 

बुझ गई ये तो सही नहीं है 


तुम तो जग के रक्षक हो 

क्यूँ लाज बचाने नहीं आए

सिर्फ युग परिवर्तन से क्षीण हो गई शक्ति 

तुम्हीं महाकाल के समकक्षक हो 



 ज्ञान के द्वार से लौट रहीं थीं 

 कागज़ और कलम लिए हाथ मे 

 पलक झपकते ही दुनियां वीरान हो गई 

 घर मे जिसकी माँ बाट जोह रहीं थीं 


 आइए कुछ क्षण शोक करें

 चलो फिर से कुछ मोमबत्तियाँ जलाये 

 हुक्मरान फिर झूठा दिलासा देंगे 

फिर से मानवता वाला ढोंग करें 


 आंखों के सागर सूख गए 

 लोग बहुत रोये हैं आज 

 रोते हुए जिस्म बहुत देखे थे 

 आज रूह भी अश्कों मे डूब गए 


बेबस मां बाप मर गए जीते जी 

जब कानून अंधा और गूंगा हो गया 

बेहसी ने ऐसा हस्र किया था 

कोई कफन भी अलग न कर सके 


 इंसानियत के दिल पर चाकू

सदी की सबसे बुरी खबर

सबसे काला दिन इतिहास का 

सदियों तक भूला ना जाएगा 


 किसी भी बलात्कारी को मत छोड़ो

 दुनियां से निष्कासन करो 

 हे ईश्वर अब खुद नीचे आकर 

 अत्याचारियों का अंत करो|



26 comments:

  1. मूक बना, क्या और क्यूँ तकता रहता है, ऊपर बैठा ! अब तो लगता है देर तो है ही, अंधेर भी है

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  2. Wah kya Khub likha hai aaj ke halato ke bare me

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२२-१०-२०२१) को
    'शून्य का अर्थ'(चर्चा अंक-४२२५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ अक्टूबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. बहुत-बहुत आभार आपका mam 🙏

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  5. सामायिक यथार्थ पर हाहाकार करती लेखनी ,काश सच कोई तो रोके ऐसे दारुण दुर्दांत दशा को ।
    मर्मस्पर्शी सृजन।

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  6. आइए कुछ क्षण शोक करें
    चलो फिर से कुछ मोमबत्तियाँ जलाये
    हुक्मरान फिर झूठा दिलासा देंगे
    फिर से मानवता वाला ढोंग करें
    यही तो आज तक हम करते आए हैं,
    मौन व्रत रखते हैं मोमबत्तियां जलाते हैं,
    अब तो यह एक परंपरा सी हो गई है!
    बहुत ही मार्मिक वही देश पर सी रचना!

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  7. मर्मस्पर्शी

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  8. इन्सानियत मर चुकी नारी का दर्द सुने कौन। मार्मिक रचना।

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    1. शुक्रिया हौसला अफजाई के लिए

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  9. मार्मिक सृजन ।

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  10. चिन्तनीय चिंतन भावपूर्ण रचना

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  11. एक संवेदनशील रचना को अंतस का मौन क्रंदन है

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