Saturday, October 9, 2021

मदमस्त सत्ताधीश

 


 

 

 

 

 

 

गरल फैला है चमन मे

तमस छा रहा है सदन मे

भ्रष्टाचार के बने प्रचारक 

सत्ता लालच है जिनके मन मे


ना भय है तम और यम का

ना भाव दया या रहम का 

लिपटे हुए है यूं स्वार्थ से

मानो गुलाम हो किसी भ्रम का 


मै ही हूँ और सबकुछ मेरा है 

हुक्मरानों का ये अहंकार है 

भूल गए जनता है मालिक 

चाहे किसी की भी सरकार है 

 

सत्ता में मदमस्त है जो 

वो दिन चार के रखवाले हैं 

माना सफेद पोशाक है इनके 

दिल से अभी भी काले हैं 


कर रहे जो मौत का सौदा 

तपिस तुम तक भी आएगी 

अर्श से सब पहुंचेग फ़र्श पे 

जिस दिन जनता जागेगी..


 

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