देवनागरी लिपि से लिपिबद्ध, भाषा सबको सिखाती हिन्दी
बहुत सरल बहुत भावपूर्ण है, ना अलग कथन और करनी है
जग की वैज्ञानिक भाषा है जो, संस्कृत इसकी जननी है
बहुत व्यापक व्याकरण है इसका, सुसज्जित शब्दों के सार से
एक एक महाकाव्य सुशोभित है जिसका, रस छंद अलंकार से
ऐसी गरिमामय भाषा अपनी, निज राष्ट्र मे अस्तित्व खो रहीं
वर्षों जिसका इतिहास पुराना, अपनों मे ही विकल्प हो रहीं
अनेक बोलियां अनेक लहजे मे, बोली जाती है हिन्दी
चाहे कबीर की सधुक्खडी हो, या तुलसी की हो अवधी
सब मे खुद को ढाल कर, खुद का तेज न खोए हिन्दी
पाश्चात्य भाषाओं के अतिक्रमण से, मन ही मन मे रोए हिन्दी
अपनों के ठुकराने का, टीस भी सह जाती है हिन्दी
वशीभूत आंग्ल भाषियों के मध्य, ठुकराई सी रह जाती हिन्दी
देख अपनों का सौतेलापन, 'मीरा' 'निराला' को खोजे हिन्दी
कहीं हफ्तों उपवास मे है, तो कहीं कहीं रोज़े मे हिन्दी
देख हिन्दी भाषा की ऐसी हालत, मन कुंठित हो जाता है
अपनों ने प्रताड़ित हो किया, फिर कहाँ कोई यश पाता है
संविधान ने भी दिया नहीं, जिसे राष्ट्र भाषा का है स्थान
फिर भी अमर रहे हिंदी हमारी, और हमारा हिन्दुस्तान