जहां, हमने नश्वर जीवन पाया है
जिसका पीया अमृत जल और,
प्राण अन्न जिसका खाया है
सदियों पुराना इतिहास जिसका,
भिन्न भिन्न उत्पत्ति की कहानी है
नष्ट हो रहीं जो मनु कृत्यों से,
इसको हमने बचानी है
धरती माँ के वृक्ष काट रहे,
बारूदी दम पे धरा बांट रहे
सूख रहे जल प्रपात भू मंडल के,
सूख रहा सब पानी है
कहीं कर जल संरक्षण कहीं वृक्षारोपण
फिर नव जीवन धरा पे लानी है
जब धरा का जर्रा जर्रा,
हरियाली से गुलजार होगा
कभी ना सूखे की मार पड़ेगी,
हर पल बसंत बाहर होगा
रिमझिम मेघ बरसेगा अम्बर से,
मिट्टी की खुशबु बयार होगा
जब धरती पर खुशहाली होगी,
तब सुखी अपना संसार होगा
जो बारूदी खेल आज,
खेल रहा जहान है
गगन भेदी मिसाइलों से,
उठा रहा तूफान है
परिणाम से इसके अनभिज्ञ वो,
खुद को सोचता महान है
धरती का सबसे बड़ा विनाशक,
खुद आज बना इंसान है
ओजोन परत मे छिद्र हो रहा,
ग्लोबल वार्मिंग धरा को तपा रहा
हर मौसम सर्प दंश सा लगता,
हर साल नया कुछ दिखा रहा
क्यूँ खेल रहे हो धरती से,
जिसने माँ बन सबको पाला है
जाग जाओ रोक लो खुद को,
वर्ना फिर प्रलय आने वाला है
उठो जागो धरती माँ के लाडलों,
फिर करना माँ का श्रृंगार है
बहुत लिया है इस धरती से,
कुछ अर्पण करना ही संस्कार है
आओ चमन मे फिर फूल खिलाकर,
करते पवित्र विचार है
फिर से गरिमामय करते है धरा को,
जिसकी ये हकदार है
अस्तित्व खतरे मे जड़ मानव का,
हर संकेत ये हमको बता रहा
खतरे के बादल मंडरा रहे हैं,
फिर भी न अफसोस जता रहा
मत बन अचेत मन में स्मरण कर,
क्यूँ दिन अपने घटा रहा
पृथ्वी न खुद को शून्य मे समा ले,
जागो मैं तुमको जगा रहा
जागो मैं तुमको जगा रहा.......
सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteSave Earth 🌍