करके खून पसीना एक
रिश्तों को जिसने सींचा है,
सहकर दुनियाभर की पीड़ा
जिसने आंखों को मींचा है
तपती दुपहरी बिन चप्पल भी
सातों भँवर वो घूम रहा है
चिंता मे व्याप्त रहता हरपल
ना एक पल का भी सुकून रहा है
कौड़ी कौड़ी जोड़-जोड़कर
जिनके ख्वाबों का आगाज़ किया है
उसकी फटी एड़ियों का दर्द
उन सबने नजरअंदाज किया है
उसके फटे-पुराने कपड़े
उसकी मजबूरी दर्शाते हैं
जिसने बांँटा कौर भी खुद का
लो अब उसी के लिए तरसाते हैं
कितना खुदगर्ज हो रहा है इंसां
भुला बैठा जीवनदाता का उपकार
बूढ़े माँ बाबा को समझे बोझ
बढ़कर पिल्लों को देता है प्यार
आरंभ हो चुका है कलयुग, तम
धीरे-धीरे पैर पसार रहा है
पहले जड़ें जर्जर हुई नातों की
अब इंसानियत भी मार रहा है
कोई देश , कोई धर्म विरोधी
कहीं विरोध भाई–भाई का कर रहा है
समझ रहे हैं हम जहां की उन्नति
पर मेरी नजर में सब उजड़ रहा है।
क्या मोल है उस प्रगति का
जिसमें निज कुटुंब का भाव नहीं
निष्ठुर वृक्ष वह है खजूर सम,
अपनत्व की शीतल छाँव नहीं
दुःखी पड़ा है मनुज मुस्काता
तिस पर अंतर्मन में सुकून नहीं
विरक्त हो चुकी रक्त वाहनियाँ
अब किसी में पितृ सेवा का जुनून नहीं
भूल चुका चरणों मे इनके
खुदा ने जन्नत न्यौछारी है
आज जैसा वह कर रहा है
कल उसकी भी बारी है।।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद गुरुजी 🙏
DeleteBahut khubsurat Rachna... Likhte Raho..
ReplyDeleteआभार
DeleteAti sunder 🤩👍🥰😍❤❤❤❤❤❤
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया
Deleteहृदय स्पर्शी यथार्थ बतलाता शानदार सृजन।
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया 🙏
Deleteमर्मस्पर्शी रचना। बिल्कुल सही जीवन का यही चक्र है उम्र का यह पड़ाव तो आना ही है
ReplyDeleteऔर तब हमारे कर्म हमें आईना दिखाते हैं।
सादर।
-----
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १२ अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत-बहुत आभार आपका 🙏
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना गुरुवार १२ अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
मर्मस्पर्शी सार्थक बेहतरीन रचना
ReplyDeleteधन्यावाद महोदया 🙏
Deleteसार्थक रचना.
ReplyDeleteआभार श्रीमान 🙏
Deleteहृदय स्पर्शी रचना बहुत ही खूबसूरती से आपने बदलते वक़्त के साथ मर रहीं इंसानियत और कमज़ोर पड़ती रिश्तों की डोर को बयां किया है।
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया मनीषा जी
DeleteBahut Sundar rachna
ReplyDeleteशुक्रिया...
Deleteअति सुन्दर रचना !
ReplyDeleteशुक्रिया Mam
Deleteसभी को यह समझना होगा। बहुत वेदनापूर्वक।
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार mam
Deleteबहुत ही मार्मिक रचना।
ReplyDeleteवाकई में शब्दों से सीधा दिल में उतरती हुई।
बहुत-बहुत आभार mam🙏
Deleteटूटते हुए परिवार और अपनी ज़िम्मेदारी से भागता हुआ आज का मानव, शायद यह समय ही ऐसा है
ReplyDeleteसही कहा...
Deleteदुःखी पड़ा है मनुज मुस्काता
ReplyDeleteतिस पर अंतर्मन में सुकून नहीं
विरक्त हो चुकी रक्त वाहनियाँ
अब किसी में पितृ सेवा का जुनून नहीं ,,,,,, भावपूर्ण,ह्रदय स्पर्शी रचना,सत्य लिखा है आपने माँ बाप की सेवा करनाअब बच्चों को बोझ लगने लगा है ।
शुक्रिया 🙏
Deleteबढ़िया लेखन
ReplyDeleteहमारी पीढ़ी का बोआ
हमारी ही पीढ़ी काट रही
बहुत-बहुत आभार 🙏
Delete👌👌👌
Delete🙏🙏
Delete