Wednesday, October 11, 2023

कल तेरी भी बारी है...


                       करके खून पसीना एक

रिश्तों को जिसने सींचा है,

सहकर दुनियाभर की पीड़ा 

जिसने आंखों को मींचा है


तपती दुपहरी बिन चप्पल भी 

सातों भँवर वो घूम रहा है

चिंता मे व्याप्त रहता हरपल

ना एक पल का भी सुकून रहा है 


कौड़ी कौड़ी जोड़-जोड़कर 

जिनके ख्वाबों का आगाज़ किया है 

उसकी फटी एड़ियों का दर्द

उन सबने नजरअंदाज किया है


उसके फटे-पुराने कपड़े

उसकी मजबूरी दर्शाते हैं

जिसने बांँटा कौर भी खुद का 

लो अब उसी के लिए तरसाते हैं 


कितना खुदगर्ज हो रहा है इंसां

भुला बैठा जीवनदाता का उपकार 

बूढ़े माँ बाबा को समझे बोझ

बढ़कर पिल्लों को देता है प्यार 


आरंभ हो चुका है कलयुग, तम

धीरे-धीरे पैर पसार रहा है

पहले जड़ें जर्जर हुई नातों की

अब इंसानियत भी मार रहा है


कोई देश , कोई धर्म विरोधी

कहीं विरोध भाई–भाई का कर रहा है

समझ रहे हैं हम जहां की उन्नति

पर मेरी नजर में सब उजड़ रहा है।


क्या मोल है उस प्रगति का

जिसमें निज कुटुंब का भाव नहीं 

निष्ठुर वृक्ष वह है खजूर सम,

अपनत्व की शीतल छाँव नहीं 


दुःखी पड़ा है मनुज मुस्काता

तिस पर अंतर्मन में सुकून नहीं 

विरक्त हो चुकी रक्त वाहनियाँ 

अब किसी में पितृ सेवा का जुनून नहीं 


भूल चुका चरणों मे इनके

खुदा ने जन्नत न्यौछारी है

आज जैसा वह कर रहा है 

कल उसकी भी बारी है।।




32 comments:

  1. Bahut khubsurat Rachna... Likhte Raho..

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  2. Ati sunder 🤩👍🥰😍❤❤❤❤❤❤

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  3. हृदय स्पर्शी यथार्थ बतलाता शानदार सृजन।

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  4. मर्मस्पर्शी रचना। बिल्कुल सही जीवन का यही चक्र है उम्र का यह पड़ाव तो आना ही है
    और तब हमारे कर्म हमें आईना दिखाते हैं।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १२ अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना गुरुवार १२ अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  6. मर्मस्पर्शी सार्थक बेहतरीन रचना

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  7. सार्थक रचना.

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  8. हृदय स्पर्शी रचना बहुत ही खूबसूरती से आपने बदलते वक़्त के साथ मर रहीं इंसानियत और कमज़ोर पड़ती रिश्तों की डोर को बयां किया है।

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया मनीषा जी

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  9. अति सुन्दर रचना !

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  10. सभी को यह समझना होगा। बहुत वेदनापूर्वक।

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  11. बहुत ही मार्मिक रचना।
    वाकई में शब्दों से सीधा दिल में उतरती हुई।

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  12. टूटते हुए परिवार और अपनी ज़िम्मेदारी से भागता हुआ आज का मानव, शायद यह समय ही ऐसा है

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  13. दुःखी पड़ा है मनुज मुस्काता

    तिस पर अंतर्मन में सुकून नहीं

    विरक्त हो चुकी रक्त वाहनियाँ

    अब किसी में पितृ सेवा का जुनून नहीं ,,,,,, भावपूर्ण,ह्रदय स्पर्शी रचना,सत्य लिखा है आपने माँ बाप की सेवा करनाअब बच्चों को बोझ लगने लगा है ।

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  14. बढ़िया लेखन
    हमारी पीढ़ी का बोआ
    हमारी ही पीढ़ी काट रही

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