Sunday, December 17, 2023

हार कर फांसी पे चढ़ गया...

 

बेरोजगार मेरे राज्य का, काँच सा बिखर गया 

इम्तिहान देना चाहे मगर, घोटालों से डर गया

नियुक्तियां सारी नेता के, रिश्तेदार ऐसे खा गए 

जैसे पालक की बेड़े को, खुला सांड कोई चर गया 


विज्ञप्तियों के इंतजार मे, चश्मे का नंबर बढ़ गया 

प्रतिस्पर्धा के दौड़ मे, वो खुद से ही पिछड़ गया 

सोचा था पहाड़ रहकर, खुद का गाँव घर सुधारेंगे 

मगर उसका हर ख्वाब, राजनीति के दलदल मे गड़ गया 


फिर भी जुटा के हौसला, परिस्थितियों से वो है लड़ गया 

ना वक़्त ने साथ दिया, और अपनों से भी बिछड़ गया 

अब नाकामियाँ मजबूर यूँ, हारने को उसे कर रहीं 

जैसे बिन पका फल, डाली ही पर हो सड़ गया 


दीमक लग रहीं प्रतिभा पर, दिमागी संतुलन भी बिगड़ गया 

फिर भी सफ़लता पाने को, वो किस्मत के आगे अड़ गया 

अंत मे हार कर जला दी सपने और सारी डिग्रियां 

फिर एक और बेरोजगार आज, हारकर फांसी पे चढ गया



16 comments:

  1. 🥰🥰🥰🥰🥰🥰🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗

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  2. 100% right bhaiya 👌 kya likha hai maza aa gya

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    1. बहुत बहुत आभार गुरुजी 🙏

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  4. बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति.... एक रेखाचित्र खींच दिया आपने शब्दों से जिसकी तकलीफ़ महसूस की जा सकती है।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १९ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  5. मर्मस्पर्शी सृजन ।

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  6. हिम्मत ही तो नहीं हारनी है, जो डर गया वह जीवन की बाज़ी कभी जीत नहीं पाता

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  7. बिल्कुल सही कहा आपने लेकिन मजबूरी और तिरस्कार कभी कभी भारी पड़ जाती हैं

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  8. आज के ताज़ा हालात पे कमाल का तप्सरा ...
    मर्म को छूते हुए बंध ...

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    1. बहुत बहुत आभार महोदय 🙏

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