Tuesday, March 5, 2024

अब सीता की बारी है...


 कहाँ त्रेता द्वापर के बंधन मे

बंधने वाली ये नारी है

कल युद्ध लड़ा था श्रीराम ने

अब सीता की बारी है

हर युग मे प्रभु नहीं आयेंगे 

त्रिया स्वाभिमान बचाने को 

बनो सुदृढ़ कर लो बाजुओं को सख्त

तैयार रहो हथियार उठाने को

तुमको ही करनी है फतह 

लंका और कुरुक्षेत्र भी

मौन ही रहने दो बनकर धृतराष्ट्र समाज को

कितने जन्म लेंगे त्रि नेत्र भी

न कोई रावण न कोई दुशासन

टिक पाएगा तेरे प्रहार से

कब तक विनय करके मांगेगी

हक जड़ अधिकाय संसार से

हाथ बढ़े जो चीर हरण को

या सतित्व को ठेस पहुंचाने को

बन काली भर अग्नि हुंकार

रक्त रंजित नेत्र काफी है भू पटल हिलाने को



16 comments:

  1. ओजपूर्ण सुन्दर सृजन ।

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    1. रंगोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  2. आज के इस बेहतरीन अंक में मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार 🙏

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  3. बहुत सुन्दर श्रृजन 👌👌
    अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं।

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  4. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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    1. हक जड़ अधिकाय संसार से

      हाथ बढ़े जो चीर हरण को

      या सतित्व को ठेस पहुंचाने को

      बन काली भर अग्नि हुंकार

      रक्त रंजित नेत्र काफी है भू पटल हिलाने को
      बहुत सटीक एवं प्रेरक सृजनवाह!!!

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  5. ओजपूर्ण ,अभिव्यक्ति ।
    सादर।

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  6. बहुत सुंदर सृजन । सादर ।

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  7. बहुत सुन्दर विचार श्रंखला

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  8. समय की यही पुकार है

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  9. सभी रचनाएं अद्वितीय हैं, मंत्रमुग्ध करती हैं असंख्य शुभकामनाएं मान्यवर ।

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  10. वाह!!!
    बहुत सटीक... लाजवाब।

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