ज़िंदगी, तू अजीब सी किताब है,
कभी आँसू, कभी हँसी का सैलाब है।
कभी धूप में जलती उम्मीदों का सागर,
कभी छाँव में ठहरी कोई ख़्वाब-सा गुलाब है।
तेरे हर पन्ने पे कुछ लिखा सा लगता है,
कहीं अधूरा, कहीं मुकम्मल जहान टिका सा लगता है।
कभी ठोकरें देती है रास्तों पे चलने को,
कभी हाथ पकड़ कर सहारा देती है संभलने को।
कभी तू शिकवा बनकर छलकती है आँखों से,
कभी दुआ बनकर ठहर जाती है होंठों पे।
कभी खामोशियों में भी बोल उठती है,
कभी भीड़ में भी तन्हाई का एहसास दिलाती है।
ज़िंदगी, तू सिखाती है —
हार में भी जीत की एक लकीर होती है,
हर अँधेरे के पीछे सुबह की ताबीर होती है।
गिरना भी मंज़िल का ही एक हिस्सा है,
सफलता के पीछे इंसान की तक़दीर होती है।
कभी दर्द, कभी गीत,
कभी मुस्कान, कभी प्रीत —
ज़िंदगी तू ना जाने कैसी पहेली है,
किसी के लिए सख्त प्रशिक्षक, किसी के लिए सहेली है।
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