Thursday, April 28, 2022

बहुत याद आते हैं वो दिन....

 



बहुत याद आते है वो दिन

वो प्राईमरी की कक्षाएं, 

वो जूनियर की यादें

वो हाई स्कूल की यारी

और पेपरों की तैयारी|


वो इंटर की बचकानी बातें

वो प्रिन्सिपल से डर

वो स्कूल से ट्यूशन

और ट्यूशन से घर|


वो कॉलेज के लेक्चर

वो कैन्टीन की चाय

वो बिल के लिए बहस

और बेवजह की लड़ाई|


वो नोट्स की शेयरिंग (Sharing) 

वो कुछ भी कर जाने वाली डेयरिंग (Daring) 

वो वन (One) नाइट फाइट की थ्योरी (Theory) 

और पुराने प्रैक्टिकल नोटबुक की चोरी|


वो दोस्तों के साथ वैकेसन (Vacation) 

वो फाइनल एक्जाम की टेंशन

वो हास्टल की आखिरी रात

और वो हमेसा टच मे रहने वाली बात|




अब भी भूला नहीं हूँ मैं

वो स्कूल से कालेज तक का सफर

बहुत दोस्त मिले कुछ बिछड़ भी गए

बस इन्हीं यादों के सहारे

कर रहा हूं जिंदगी की गुजर बसर...

               शुक्रिया दोस्तों 

Sunday, April 3, 2022

तब याद करोगे तुम मुझे...


 जब अंधेरी रातों में कोई टूटा ख्वाब जगायेगा 

जब तेरे ख्वाब भी बिखरेंगे तब याद करोगे तुम मुझे


कभी चलते चलते ग़र तेरा दुपट्टा सरकेगा कांधे से 

जब खुद उठाओगे दुपट्टे को तब याद करोगे तुम मुझे 


कैसे सड़क के पगडंडी पे तुमको खतरों से बचाता था 

जब गुजरेगी छूकर बाइक कोई तब याद करोगे तुम मुझे 


जब आंसुओं का नमकीन स्वाद होंठों को तेरे भिगोयेगा 

जब होगी दर्द की इन्तहा तब याद करोगे तुम मुझे 


कैसे सहा है तड़प मैंने जला के खुद के सपनों को 

जब ख्वाब तेरा कोई टुटेगा तब याद करोगे तुम मुझे 


गली के आखिरी टपरी पे जहां कटिंग चाय की बांटी थी

जब आएगी खुशबु कुल्हड़ की तब याद करोगे तुम मुझे 


वो तेरे बिन कहे लफ़्ज़ों के मायने समझ जाता था मैं 

जब अनसुने होंगे शब्द भी तेरे तब याद करोगे तुम मुझे 


बे वजह छोड़ा था तुमने मुझे देख मेरी मुफ़लिसी को 

जब पैसा होगा पर प्यार नहीं तब याद करोगे तुम मुझे 


तुम जानते हो है मुझको पसंद वो भीनी खुशबु मेहंदी की 

जब भी लगेगी हाथो मे तब याद करोगे तुम मुझे..... 



Wednesday, March 16, 2022

आखिर क्यों बिक रहा है पानी..


 दुनिया मे एक तिहाई  होकर भी 

बोतलों में क्यों बिक रहा पानी

क्यों  बैसाखी के भरोसे हैं दफ्तर,

 हताश निराश भटक रही है जवानी...


चश्मे का नंबर बढ़ा हुआ है 

घुटने का दर्द करता बयां कहानी 

पके बालों से चल रही सरकारें

बेरोजगार बैठीं है युवा जवानी


चंद मिनटों के काम में यहां

घंटों लगा देते हैं वृद्ध सेनानी

देश कछुओं के झुंड में फंसा  ...

खरगोश सी व्याकुल बैठी है जवानी


सत्ता भी उन से चल रहीं

जिनको परिवर्तन लगता है नादानी 

21 वीं सदी मे भी फंसे हैं लंगोट में 

जहां सूट बूट मे तैयार जवानी 


मैं ये नहीं कहता नाकाबिल है ये सब 

बस उम्र ने बढ़ायी है सब की परेशानी 

उचित सुविधा और सम्मान सेवानिवृत्त लें 

नव जोश लिए परिवर्तन को आतुर है जवानी 


बूढ़ा शेर भी असहाय हो जाता है 

फिर इंसान के बुढ़ापे पर कैसी हैरानी 

अपार भंडार है पर गुणवत्ता शून्य 

तभी इतना महँगा बिकने लगा है पानी।