Saturday, May 8, 2021

"हाँ मैं एक मजदूर हूँ"



घर छोड़ा,परिवार छोड़ा,
छोड़ के अपने गाँव को
भाई बहिनों का साथ छोड़ा और
उस पीपल की छाँव को
माँ के  हाथ का खाना छोड़
हर खुशी को तरसता जरूर हूँ 
हाँ, मैं एक मजदूर हूँ.... 

चंद रुपया कमाने के खातिर
और भरपेट खाने को
बहुत पीछे छोड़ आया हूँ
अपने खुशियों के जमाने को
कुछ कमाने तो लग गया हूँ मगर
 घर से बहुत दूर हूँ 
हाँ, मैं एक मजदूर हूँ... 

किसको अच्छा लगता है साहब
 अपनों से बिछड़ने मे 
मीलों दूर परदेश मे रहकर
खुद ही किस्मत से लड़ने में 
कहीं हालातों का मारा हूँ
कभी भूख से मजबूर हूँ 
 हाँ, मैं एक मजदूर हूँ...

बेहद बेबस कर देती है,
भूख मुझसे बेचारों को
वरना दूर कभी न भेजती 
माँ अपनी आंखों के तारों को
हारा नहीं हूँ अभी भी मैं
हौसले से भरपूर हूँ 
कई दिनो का भूखा प्यासा 
हाँ, मैं एक मजदूर हूँ....

Monday, April 19, 2021

तुम मेरे लिए एक पहेली हो....

मै हूँ खुली किताब सा तेरे लिए 
तुम मेरे लिए एक पहेली हो
मै वीरान कोई मकान पुराना
तुम एक अलीशान हवेली हो

मै बंजर जमीं का टुकड़ा सा 
तुम खेत खुले हरियाली हो
मै मुरझा एक टूटा पत्ता सा 
तुम कलियो की लाली हो

मैं बूंद बूंद बहता पानी
तुम सागर अपरम्पार हो 
मै धरा का एक हिस्सा मात्र 
तुम सारा ही संसार हो 

तुमसे ही हर रिश्ता है जग मे 
मैं उस रिश्ते की डोर हूं 
तुम शीतल चांद हो गगन की 
मैं तुमको तकता चकोर हूँ 

मै भोर का हूँ एक डूबता तारा 
तुम प्रकाश दिनकर के हो 
मै एक अभिशाप सा हूँ धरती पर 
तुम वरदान ईश्वर के हो..... 

Tuesday, April 6, 2021

दो गज दूरी....

हक मे हवायें चल नहीं रहीं 
प्रकृति भी रुख रही बदल 
फैल रहा रिपु अंजान अनिल संग 
घर से तू ना बाहर निकल 

कर पालन हर मापदंड का
जिसे सरकारों ने किया है तय 
बना लो दूरियां दरमियाँ कुछ दिन 
पास आने से संक्रमण का है भय 

पहनो मास्क रखो सफाई भी 
हाथों को भी नित तुम साफ़ करो
Sanitizer का करके इस्तेमाल
संदेह और भय का त्याग करो 

अपना और अपनों का जीवन
जिद्द मे आकर ना क्षय करो
एकांत या देहांत तुम्हें क्या चाहिए 
ये खुद तुम ही अब तय करो

करके अपने ज़ज्बात पे काबू 
रख दो दो गज की दूरी 
अगर बचना है इस महामारी से 
तो मास्क पहनना है जरूरी |
                              (हैरी) 

Tuesday, March 23, 2021

"अमर सपूत"

*शहीद भगत सिंह एवं सभी अमर शहीदों के माँ के अंतिम शब्दों को बयां करके की कोशिश की है कृपया कुछ गलतियां हो गई हों तो माफ़ कीजिएगा*

ऐ धरती के अमर सपूत
तुझ बिन आँखे पथराई हैं
तू मातृभूमि पे हुआ निसार
असहनीय तेरी जुदाई है

परमवीर और अदम्य साहसी
तू सच्चा मातृभूमि का रखवाला था
माना जननी जन्मभूमि है सबसे पहले 
नौ माह मैंने भी तुझे पाला था

एक माँ की रक्षा के खातिर
एक माँ का सूना संसार किया
झूल गया हँसकर फंदे से
शोकाकुल अपना घर बार किया

एक वो दिन था जब आस सदा
आने की तेरी रहती थी
मिल के फिर तुझको सहलाऊँगी
इस आस मे दूरी सहती थी

अब गया तू ऐसे छोड़ मुझे
शायद कभी ना मिल पाऊँगी 
कल तक मेरा "बेटा" था तू 
अब "माँ" मैं तेरी कहलाऊँगी 

पहचान मुझे दे गया नई 
तू होकर अमर इतिहास मे 
धन्य मेरी कर गया कोख को 
सदा अमर रहेगा तू जनमानस के एहसास मे |
                                             *जय हिंद*
                                                   (हैरी) 

Sunday, March 21, 2021

*ऐसा मेरा पहाड़ है*

*ऐसा मेरा पहाड़ है*

चिडियों की चहचहाहट, कहीं भँवरो की गुंजन
कहीं कस्तूरी हिरण तो कहीं बाघ की दहाड़ है 
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है। 

खेतों में लहराती हरियाली, कल-कल करती नदियाँ मतवाली
मंजुल झरनों से आती ठंडी ठंडी फुहार है 
हाँ ऐसा  मेरा पहाड़ है। 

ग्वालों की बंसी, बकरियां हिरनी सी 
महकती फूलों की घाटी तो औषधीय बयार है 
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है। 

बर्फीले हिमाल, कहीं मखमली बुग्याल
परियों का वास, कहीं एकलिंग की शक्ति अपार है 
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है। 

गंगा का उद्गम यहीं, बद्री और केदार यहीं 
शिव की नगरी हर की पौड़ी और यहीं हरिद्वार है
हाँ ऐसा मेरा पहाड़ है।
                     हैरी