मै हूँ खुली किताब सा तेरे लिए
तुम मेरे लिए एक पहेली हो
मै वीरान कोई मकान पुराना
तुम एक अलीशान हवेली हो
मै बंजर जमीं का टुकड़ा सा
तुम खेत खुले हरियाली हो
मै मुरझा एक टूटा पत्ता सा
तुम कलियो की लाली हो
मैं बूंद बूंद बहता पानी
तुम सागर अपरम्पार हो
मै धरा का एक हिस्सा मात्र
तुम सारा ही संसार हो
तुमसे ही हर रिश्ता है जग मे
मैं उस रिश्ते की डोर हूं
तुम शीतल चांद हो गगन की
मैं तुमको तकता चकोर हूँ
मै भोर का हूँ एक डूबता तारा
तुम प्रकाश दिनकर के हो
मै एक अभिशाप सा हूँ धरती पर
तुम वरदान ईश्वर के हो.....
वाह.! प्रशंसनीय...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
DeleteNice
ReplyDeleteThanks
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२१-०४-२०२१) को 'प्रेम में होना' (चर्चा अंक ४०४३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
शुक्रिया 🙏
ReplyDeleteक्या बात है बहुत अच्छी रचना।
ReplyDeleteमै भोर का हूँ एक डूबता तारा
तुम प्रकाश दिनकर के हो
बहुत बहुत शुक्रिया
Deleteमैं बूंद बूंद बहता पानी
ReplyDeleteतुम सागर अपरम्पार हो
मै धरा का एक हिस्सा मात्र
तुम सारा ही संसार हो
अति सुंदर सृजन,सादर नमन आपको
बहुत बहुत आभार
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया
DeleteSundar rachna
ReplyDeleteधन्यावाद
Delete👍
ReplyDelete🙏
DeleteWahhhhh bhut sunder.....
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteWaow bahut khoob
ReplyDeleteThank you
DeleteBhut bdiya jijaji...
ReplyDeleteThank you so much
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