Monday, April 19, 2021

तुम मेरे लिए एक पहेली हो....

मै हूँ खुली किताब सा तेरे लिए 
तुम मेरे लिए एक पहेली हो
मै वीरान कोई मकान पुराना
तुम एक अलीशान हवेली हो

मै बंजर जमीं का टुकड़ा सा 
तुम खेत खुले हरियाली हो
मै मुरझा एक टूटा पत्ता सा 
तुम कलियो की लाली हो

मैं बूंद बूंद बहता पानी
तुम सागर अपरम्पार हो 
मै धरा का एक हिस्सा मात्र 
तुम सारा ही संसार हो 

तुमसे ही हर रिश्ता है जग मे 
मैं उस रिश्ते की डोर हूं 
तुम शीतल चांद हो गगन की 
मैं तुमको तकता चकोर हूँ 

मै भोर का हूँ एक डूबता तारा 
तुम प्रकाश दिनकर के हो 
मै एक अभिशाप सा हूँ धरती पर 
तुम वरदान ईश्वर के हो..... 

22 comments:

  1. वाह.! प्रशंसनीय...

    ReplyDelete
  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२१-०४-२०२१) को 'प्रेम में होना' (चर्चा अंक ४०४३) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
  3. क्या बात है बहुत अच्छी रचना।
    मै भोर का हूँ एक डूबता तारा
    तुम प्रकाश दिनकर के हो

    ReplyDelete
  4. मैं बूंद बूंद बहता पानी
    तुम सागर अपरम्पार हो
    मै धरा का एक हिस्सा मात्र
    तुम सारा ही संसार हो

    अति सुंदर सृजन,सादर नमन आपको

    ReplyDelete
  5. सुन्दर रचना

    ReplyDelete