Saturday, October 2, 2021

मैं फिर मिलूंगा....

हम फिर मिलेंगे कभी.... 

शायद इस जनम मे तो नहीं 

पर मेरा अटल विश्वास है 

मैं तेरे दिल मे हमेशा रहूँगा 

कहीं किसी सीप मे मोती की तरह 

कभी  हारिल की लकड़ी सा 


अब आँखों से तेरी ओझल हो गया 

चाह कर भी कहीं ढूंढ ना पाओगे 

पर तुझमे मुझको ढूंढेगी दुनिया 

जैसे चांद के संग चौकोर 

जैसे इन्द्रधनुष और मोर 

किस्से अपने या कुछ और 


मैं तेरी यादों से लिपट जाउंगा 

पर तुझे भी बहुत याद आऊंगा 

पता नहीं कहाँ किस तरह

पर पलकें तेरी भी जरूर भीगेगी

सैलाब ना सही चंद बूँदों से 

तेरी आंख का काजल भी मिटेगा 


या फ़िर यादों का फव्वारा 

जैसे झरने से पानी उड़ता है

मैं पानी की बूंदें बनकर 

तेरे बदन से रिसने लगूंगा 

और एक ठंडक सी बन कर

तेरे सीने से लगूंगा 


मुझे कुछ नहीं पता 

पर इतना जरूर जानता हूँ

कि वक्त जो भी करेगा

यह लम्हा मेरे साथ चलेगा

यह शरीर खत्म होता है

तो सब कुछ खत्म हो जाता है


पर ये नूरानी रूह के धागे

कायनात तक जोड़े रखते हैं 

उन्हीं धागों के सहारे 

मैं तुझसे जुड़ा मिलूंगा 

बस इस जन्म की नींद से जागते ही

तुझे उस जन्म मे फ़िर मिलूंगा !!

     


                                   (हैरी) 

Monday, September 27, 2021

भटकता मुसाफिर..

आखिर तुम्हें क्या तकलीफ है पथिक 

खामोश और तन्हा घूम रहे हो 

सूरज भी झील मे डूब गया है,

और कोई पक्षी भी चहचहाता नहीं है।


 आखिर तुम्हें क्या तकलीफ है पथिक 

 इतना गुमसुम और इतना दर्द ?

 गिलहरी का भण्डार भरा हुआ है,

 और नयी फसल पकने को है।


तुम्हारे माथे पर एक शिकन है,

पीड़ित नम पलके और रुआँसा के साथ,

तेरे सुर्ख गालों पर खिलता एक गुलाब

जल्दी मुरझा भी जाता है।


मैं स्वप्न में एक स्त्री से मिला,

जो हुस्न-ए-अप्सरा लिए थी ,

जिसके केशों ने पग छुए थे उसके 

और आँखों मे समुद्र समाया था।


 


मैंने उसे सोलह श्रृंगार कराए,

और कंगन संग दिया इत्र भी

उसने मुझे यूँ प्यार से देखा

मानो सच्चा प्यार किया हो उसने भी |


मैंने उसे यूँ पलकों मे बिठाया,

फिर दिन भर कुछ और देखा नही,

पूर्णिमा के चांद सा चेहरा लिए ,

गुम हो गई वो बादलों मे कहीं ।


अब भी आंखे तलाश में उसके,

नित हर ओर उसे खोजती हैं 

मानो कोई भोर का सपना, 

जो मैंने देखा था कभी।


मैंने उसकी होंठों की उदासी में देखा,

एक भयानक चेतावनी और इंतकाम,

जब मैं जागा और खुद को पाया,

एक ठंडी पहाड़ी की तरफ।

और इसलिए मैं यहां भ्रमण करता हूं,

अकेला और बेरूखी लिए हुए,

मानो झील से सेज सूख गया हो,

और पक्षी भी कोई गाता नहीं यहाँ।

                 (हैरी)                    


Wednesday, September 22, 2021

एक रोज़ तुम्हें बताऊँगा..

क्यूँ सारे सपने धूमिल हो रहे 

क्यूँ हवा का रुख बदल रहा है

फिर क्यूँ बारिश मे यादें उमड़ रहीं हैं 

मैं तुम्हें एक दिन बताऊंगा


क्यूँ आसमाँ में घनघोर घटा छा जाती हैं

क्यूँ एक झोंका हवा का यादों को उड़ा देती है

फिर क्यों आती हैं आंसुओ की धारा

मैं तुम्हें एक दिन बताऊंगा


क्यूँ गुज़रे लम्हों की हर एक यादें

एक तेज छुरी सी चमकती है

फिर क्यूँ प्रणय मिलन से डरता है मन 

मैं तुम्हें  किसी रोज बताऊंगा


क्यूँ मद्धम मद्धम बढ़ता वेग वर्षा का 

क्यूँ हर बूंद एक दर्द छोड़ती है

फिर क्यूँ घटा बरसती आँखों से 

मैं तुम्हें किसी दिन बताऊंगा


क्यूँ आसमान में  उठ रही अंगडाई 

क्यूँ कोई भ्रम सा साथ होता है

फिर क्यूँ पागलों सी हालत है मेरी 

मैं तुमको एक दिन बताऊंगा


काली घटाओं की गर्जन 

और बारिश के बाद का सन्नाटा

चिंतित मन के हालात भी 

मैं तुमको एक दिन बताऊँगा 


तन्हा रातों का सबब और 

हंसता चेहरा आंसू दर्द

सपने और हकीकत भी

मैं तुमको एक दिन दिखाऊंगा|

                                                  (Harry) 

Thursday, September 9, 2021

जंग या जिंदगी?

 


हर  युद्ध के बाद

किसी को तो सफाई करनी ही है।

हालत नहीं कर सकते 

आखिर खुद को तो सही करो।

 

किसी को तो ढकेलना ही है 

 मलवा सड़क के किनारों तक,

 तभी तो लाश से भरी गाड़ियाँ

 आगे बढ़ सकती हैं ।


 किसी का पैर तो फंसना ही है 

 कीचड़ और राख में,

 टूटी कुर्सियाँ और खून से लथपथ कपड़े 

 है एक और नए बटवारे के फ़िराक़ मे 


 किसी को तो गढ़ना होगा बुनियाद मे 

 दीवार खड़ी करने के लिए,

 किसी को रोशनदान बनकर,

 शुद्ध हवा को भीतर लाना होगा।


 तत्काल बना यह नहीं है,

 वर्षों से सुलगती आग है ये 

 सारे हथियार फिर से तैयार हैं

 एक और युद्ध के लिए।


हमें फिर से आवश्यकता होगी

एक जुट होकर आगे आने की।

गृह क्लेश से विश्व युद्ध तक रोक कर 

बिखरते शांति को संजोने की।


कैसे, हाथ में छड़ी,

अभी भी याद है कि वह कैसा था।

शांति अहिंसा दो हथियारों से 

क्रूर शासन का तख्त हिलाता था।


आस्तीनों मे 

अभी भी कई साँप पल रहे हैं 

जंग लगे हो कारतूसों मे भले 

जाबांज हौसलों से ही शेषनाग के फन कुचल रहे है।


घास में जो उग आये हैं 

फिर से रक्तरंजित कुछ कोंपले 

किसी को तो बढ़ाना ही होगा

जर जर टूटते हौसले|

                       (हैरी)



Sunday, September 5, 2021

गुरु महिमा अपरम्पार

प्रभु तेरा गुणगान कर सकूँ

इस काबिल जिसने बनाया है

मेरे अज्ञानरूपी अंधकार में

ज्ञान का दीपक जलाया है|


उन गुरुओं के चरणों मे सदा

शीश अपना झुकाया है

प्रभु तेरे इस दिव्य स्वरुप को

आखर -आखर से सजाया है|


जिसने ज्ञान की जोत जलायी

जिसने अक्षर की पहचान दिया

गुरु के ज्ञान से होकर काबिल

सबको जग ने सम्मान दिया|


उस गुरु का मान रख सकें

प्रभु इतना वरदान देना

हम भी गुरु पग चिह्न पर चले

हमको सन्मार्ग की पहचान देना|


मेरे गुरु तारणहार है मेरे

मेरे पहले भगवान भी

हे गुरुवर! तुम ज्ञाता हो जग के

प्रभु तुल्य इंसान भी|


महिमा तुम्हारी वर्णन कर सकूँ 

मुझमे इतना ज्ञान नहीं 

वह मंदिर भी श्मशान सा मेरे लिए 

जहां गुरुओं का सम्मान नहीं|


शब्द नहीं उचित उपमा को 

अब कलम को देता विराम हूँ 

गुरुवर आप अजर अमर रहें 

चरणों मे करता प्रणाम हूँ 

चरणों में करता प्रणाम हूँ|

                     ... (हैरी) 



शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 

Tuesday, August 31, 2021

माँ का प्यार....


माँ की ममता है ही कुछ ऐसी 

जिसे कोई समझा नहीं सकता,

यह सर्वोच्च आस्था से बना है

और इसके बलिदान से बड़ा कुछ हो नहीं सकता 


 यह पाक साफ और निःस्वार्थ है

इससे स्थायी क्या हो सकता है

ना कोई उसके प्यार को छीन सकता 

 और कुछ भी इसे ना मिटा सकता है |


 यह धैर्य और क्षमाशीलता ना खोता 

भले ही भरोसा रहा हो टूट

और यह कभी विफल नहीं होता 

चाहे सबकुछ रहा हो छूट |


इसमे विश्वास अनंत अडिग है

चाहे जग निंदा करे चहु ओर 

यह पूर्ण सुंदरता से चमकता 

 सबसे चमकीले रत्न सा कहीं दूर |


 यह परिभाषित का मोहताज नहीं है,

 यह सभी तर्कों की करे निंदा 

रहस्यमय है अभी भी दुनियां के नज़रों मे 

 सृष्टि के अन्य रहस्यों की तरह,


 एक बहुत ही शानदार चमत्कार

मनुष्य समझ ही नहीं सकता

यह एक चमत्कारिक सबूत है 

खुदा के चामत्कारिक हाथों का |

                                      (हैरी)



Friday, August 27, 2021

अंत नहीं होता....



जब मैं मरूँ, मेरा जनाज़ा निकाला जा रहा हो.. 

 यह न सोचना कि मैं इस दुनिया को याद कर रहा हूँ 

 कोई अश्क न बहाए, शोक न करे , न ही कोई मन भारी करे... 

मैं राक्षस के रसातल में नहीं पड़ रहा हूँ


 जब देखो मेरा  जनाजा जाते हुए, 

  पीड़ासक्त होकर रोना नहीं... 

मैं अलविदा नहीं कह रहा हूंँ, 

मैं तो शाश्वत प्रेम से मिल रहा हूंँ।


मुझे मेरी कब्र में छोड़ आओ, तो अलविदा मत कहना.. 

 याद रखना कब्र तो जन्नत के लिए सिर्फ एक पर्दा महज है

तुमने मुझे केवल पंचतत्व मे विलीन होता देखा, 

अब मुझे पंचतत्व होता भी देखो... 


प्रकृति का अंत कैसे हो सकता है?

 नहीं हो सकता... 

 मरण सूर्यास्त सा है, अंत सा लगता है 

लेकिन वास्तव में यह भोर है.। 

गोधूलि और भोर में सूर्य चंद का अंत नहीं होता... 

दोनों मौजूद रहते हैं कहीं न् कहीं


जब मिट्टी तुम्हें खुद मे मिला लेती है,

तब आत्मा मुक्त हो जाती है।

 क्या आपने कभी किसी बीज को धरती पर गिरे हुए 

नव जीवन के साथ  उगते नहीं देखा है?

फिर मनुष्य  के बीज उगने पर संदेह कैसा ?

 अंत नहीं होता प्रकृति का..... 

                                       (हैरी)