आखिर तुम्हें क्या तकलीफ है पथिक
खामोश और तन्हा घूम रहे हो
सूरज भी झील मे डूब गया है,
और कोई पक्षी भी चहचहाता नहीं है।
आखिर तुम्हें क्या तकलीफ है पथिक
इतना गुमसुम और इतना दर्द ?
गिलहरी का भण्डार भरा हुआ है,
और नयी फसल पकने को है।
तुम्हारे माथे पर एक शिकन है,
पीड़ित नम पलके और रुआँसा के साथ,
तेरे सुर्ख गालों पर खिलता एक गुलाब
जल्दी मुरझा भी जाता है।
मैं स्वप्न में एक स्त्री से मिला,
जो हुस्न-ए-अप्सरा लिए थी ,
जिसके केशों ने पग छुए थे उसके
और आँखों मे समुद्र समाया था।
मैंने उसे सोलह श्रृंगार कराए,
और कंगन संग दिया इत्र भी
उसने मुझे यूँ प्यार से देखा
मानो सच्चा प्यार किया हो उसने भी |
मैंने उसे यूँ पलकों मे बिठाया,
फिर दिन भर कुछ और देखा नही,
पूर्णिमा के चांद सा चेहरा लिए ,
गुम हो गई वो बादलों मे कहीं ।
अब भी आंखे तलाश में उसके,
नित हर ओर उसे खोजती हैं
मानो कोई भोर का सपना,
जो मैंने देखा था कभी।
मैंने उसकी होंठों की उदासी में देखा,
एक भयानक चेतावनी और इंतकाम,
जब मैं जागा और खुद को पाया,
एक ठंडी पहाड़ी की तरफ।
और इसलिए मैं यहां भ्रमण करता हूं,
अकेला और बेरूखी लिए हुए,
मानो झील से सेज सूख गया हो,
और पक्षी भी कोई गाता नहीं यहाँ।
(हैरी)
Wowwwwwww
ReplyDeleteThank you
Deleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया mam
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-9-21) को "आसमाँ चूम लेंगे हम"(चर्चा अंक 4201) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत-बहुत आभार mam
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना मंगलवार २८ सितंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत-बहुत आभार mam 🙏
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 28 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार 🙏
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार गुरुदेव 🙏
ReplyDeleteAdbhut kalpna...
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार
Deleteखूब बधाई शानदार लेखन के लिए।
ReplyDeleteवाह! बहुत ही बेहतरीन और उम्दा रचना
ReplyDeleteशुक्रिया..
Deleteमैंने उसे यूँ पलकों मे बिठाया,
ReplyDeleteफिर दिन भर कुछ और देखा नही,
पूर्णिमा के चांद सा चेहरा लिए ,
गुम हो गई वो बादलों मे कहीं ।
वाह!!!
अद्भुत कल्पना...
बहुत सुन्दर।
बहुत-बहुत आभार mam
Deleteवाह क्या बात है।
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार mam
Deleteबेहतरीन और उम्दा रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार
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