धरती नाप ली नापने को
अंतरिक्ष मे पड़े आसमान बहुत है
"पंख"थोड़े कमजोर पड़ गए
हौसलों मे अब भी उड़ान बहुत है
चापलूसी से जीत लेंगे जग को
सोचने वाले नादां बहुत हैं
खुद को अमर समझने वाले
भूल गए श्मशान बहुत हैं
मन वचन कर्म से ऊंचे
दुनियां मे अब भी इंसान बहुत है
सबकुछ बक्सा है खुदा ने
बन्दे लेकिन हैरान बहुत है
लाखों की माया है फिर भी
दिल मे छुपाये अरमान बहुत है
पत्थर को दिया दर्जा खुदा का
खुले घूम रहे शैतान बहुत हैं
कागज कलम और एक शांत कोना
लिखने को पूरा जहान बहुत है
दुआएँ अपनों की रहती है संग
फिर भी बेचारा "हैरी" परेशान बहुत है
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteधन्यवाद sir 🙏
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteतहेदिल से आभार 🙏 बस आप लोगों से ही सीखने की कोशिश कर रहा हूँ
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