Tuesday, March 16, 2021

मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है

मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है डर
लोभ मोह सब मिथ्या है अछूता नहीं कोई फिर भी मगर

इर्ष्या द्वेष और छल कपट से भरा हुआ है डगर तेरा 
कांधे चार दो गज ज़मीं श्मशान ही अंतिम सफर तेरा 
फिर क्यों खुद को तू अपनों से अलग-थलग रहा है कर 
मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है डर 

नेकी ही संग जाएगी जब कहर काल का बरसेगा 
मुह फ़ेर लिया था जिनसे मिलने को उनसे तरसेगा
भले अलग रहने लगा है खुश तू भी नहीं है पर 
मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है डर 


बन कलाम और गाँधी सा ग़र धर्म की बेड़ी तोड़नी है 
दो दिन की जिंदगी मे ग़र अमिट छाप जो छोड़नी है 
पुण्य कमा जो पहुंचाएंगे तुझको तेरे रब के दर 
मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है डर
                                                    ...... हैरी 

20 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 16 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आपका बहुत बहुत आभार... कृपया अपना सहयोग और स्नेह बनाए रखे

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  2. बेहतरीन रचना

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  3. बस कर्म ही साथ जाएगा लेकिन यह जानते हुए भी न जाने क्यों लोग पागल पैसे के पीछे ।
    सार्थक संदेश

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    1. मोह के वशीभूत है सभी यहाँ Mam... उत्साहवर्धन के लिए आभार

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    1. बहुत बहुत आभार गुरुदेव 🙏

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  5. प्रेरणादायक

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  6. बहुत सुंदर सृजन।
    सादर

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  7. सुंदर सारगर्भित रचना ।

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  8. की ही संग जाएगी जब कहर काल का बरसेगा
    मुह फ़ेर लिया था जिनसे मिलने को उनसे तरसेगा
    भले अलग रहने लगा है खुश तू भी नहीं है पर
    मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है डर
    जीवन में नैतिक मूल्यों का आह्वान करती भावपूर्ण और सार्थक रचना प्रिय हरीश जी |

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    1. बहुत बहुत आभार रेणु जी 🙏

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