मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है डर
लोभ मोह सब मिथ्या है अछूता नहीं कोई फिर भी मगर
इर्ष्या द्वेष और छल कपट से भरा हुआ है डगर तेरा
कांधे चार दो गज ज़मीं श्मशान ही अंतिम सफर तेरा
फिर क्यों खुद को तू अपनों से अलग-थलग रहा है कर
मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है डर
नेकी ही संग जाएगी जब कहर काल का बरसेगा
मुह फ़ेर लिया था जिनसे मिलने को उनसे तरसेगा
भले अलग रहने लगा है खुश तू भी नहीं है पर
मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है डर
बन कलाम और गाँधी सा ग़र धर्म की बेड़ी तोड़नी है
दो दिन की जिंदगी मे ग़र अमिट छाप जो छोड़नी है
पुण्य कमा जो पहुंचाएंगे तुझको तेरे रब के दर
मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है डर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 16 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार... कृपया अपना सहयोग और स्नेह बनाए रखे
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteबस कर्म ही साथ जाएगा लेकिन यह जानते हुए भी न जाने क्यों लोग पागल पैसे के पीछे ।
ReplyDeleteसार्थक संदेश
मोह के वशीभूत है सभी यहाँ Mam... उत्साहवर्धन के लिए आभार
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार गुरुदेव 🙏
Deleteप्रेरणादायक
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏
Deleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत धन्यावाद 🙏
Deleteसुंदर सारगर्भित रचना ।
ReplyDeleteआभार आपका 🙏
Deleteकी ही संग जाएगी जब कहर काल का बरसेगा
ReplyDeleteमुह फ़ेर लिया था जिनसे मिलने को उनसे तरसेगा
भले अलग रहने लगा है खुश तू भी नहीं है पर
मृत्यु तो शाश्वत सत्य है फिर किस बात से तू रहा है डर
जीवन में नैतिक मूल्यों का आह्वान करती भावपूर्ण और सार्थक रचना प्रिय हरीश जी |
बहुत बहुत आभार रेणु जी 🙏
DeleteAtyant adbhut lekh
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार
DeleteWowowo gajbbbb re daaa
ReplyDeleteशुक्रिया
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