बनाया था जो मैंने सपनों का महल ढह गया
मैं गैर था उसके लिए गैर ही रह गया
बहुत जद्दोजहद की उसे पाने को लकीरो से
दिल ऐसा टूटा लहू आँखों से बह गया
मेरे ख्वाब याद सांसो तक मे समाया था वो..
पल भर में ही बेवजह अलविदा कह गया
लड़ रहा था खुदा तक से भी जिसे पाने के लिए
खुदा कसम उसी के लिए सबकुछ चुपचाप सह गया
कड़वी मगर एक सच्चाई से वाकिफ कर गया वो
वर्षों तक वफा की थी मैंने और अकेला रह गया
मैं गैर था उसके लिए गैर ही रह गया.....
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 07 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteBahut bahut आभार... 🙏
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" सोमवार 08 मार्च 2021 को साझा की गयी है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुंदर सृजन।
ReplyDeleteधन्यवाद गुरुदेव 🙏
ReplyDeleteदिल से निकली चुपके से दूर तलक सुनाई देने वाली आवाज लिखी है आपने
ReplyDeleteबहुत खूब!
एक सुझाव-
एक दिन में एक ही रचना ब्लॉग पर पोस्ट करो तो बेहतर रहेगा, पढ़ने के लिए समय जरुरी है मिलता है, शुरुवात में मैं भी इस बात को नहीं समझती थी लेकिन अब समझ आता है कि पोस्ट अंतराल कम से कम 4-5 दिन का हो तो बहुत अच्छा रहता है
जरूर आपकी बातों का स्मरण किया जाएगा. आपका तहेदिल से आभार
Deleteएकदम सही परिचय दिया है आपने अपने प्रोफाइल में कि ---
ReplyDeleteन आग उगलता शब्दों से, न घाव पुराने क़ुदरता हूँ
मैं सीधे-सीधे शब्दों से, सीधे दिल में उतरता हूँ
धन्यावाद आपका
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार...
ReplyDeleteलड़ रहा था खुदा तक से भी जिसे पाने के लिए
ReplyDeleteखुदा कसम उसी के लिए सबकुछ चुपचाप सह गया ।
दर्दे दिल की दास्तान और ये क्या क्या न करा दे ।
खूबसूरत ग़ज़ल
अच्छा लिखा है.
ReplyDeleteशुक्रिया 🙏
Deleteदिल के दर्द को शब्दों में बाखूबी पिरोया है आपने,बेहतरीन भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सब का
ReplyDeleteसुन्दर और स्पष्ट भाव...
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteकृपया अन्य रचनाओं को भी पढ़े एक बार.. बहुत मन से लिखीं हैं
ReplyDeleteशुक्रिया
ReplyDeleteHeart touching
ReplyDeleteThank you so much
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