बोतलों में क्यों बिक रहा पानी
क्यों बैसाखी के भरोसे हैं दफ्तर,
हताश निराश भटक रही है जवानी...
चश्मे का नंबर बढ़ा हुआ है
घुटने का दर्द करता बयां कहानी
पके बालों से चल रही सरकारें
बेरोजगार बैठीं है युवा जवानी
चंद मिनटों के काम में यहां
घंटों लगा देते हैं वृद्ध सेनानी
देश कछुओं के झुंड में फंसा ...
खरगोश सी व्याकुल बैठी है जवानी
सत्ता भी उन से चल रहीं
जिनको परिवर्तन लगता है नादानी
21 वीं सदी मे भी फंसे हैं लंगोट में
जहां सूट बूट मे तैयार जवानी
मैं ये नहीं कहता नाकाबिल है ये सब
बस उम्र ने बढ़ायी है सब की परेशानी
उचित सुविधा और सम्मान सेवानिवृत्त लें
नव जोश लिए परिवर्तन को आतुर है जवानी
बूढ़ा शेर भी असहाय हो जाता है
फिर इंसान के बुढ़ापे पर कैसी हैरानी
अपार भंडार है पर गुणवत्ता शून्य
तभी इतना महँगा बिकने लगा है पानी।