Tuesday, February 28, 2023

तेरी खामोशी, मेरा साज...



बिखरे अल्फ़ाज़ों की माला,
गढ़ना कभी आसान न था,
तेरे लबों की खामोशी को
पढ़ना कभी आसान न था।

फिर भी दिल की सुनी सदा,
भावनाओं को शब्दों में ढाला,
लफ़्ज़ों को पिरोया जब मैंने,
बन गई प्रीत की इक माला।

अब बस तुझ पर ही लिखना है,
तेरी ही आंखों को पढ़ना है,
तेरी खामोशी को लफ़्ज़ देना,
अपनी तन्हाई से लड़ना है।

लिखना है वो बिछड़ने का मंज़र,
लिखने हैं प्रेम के वो पल,
लिखनी है तेरी मेरी दास्तां,
हर वो मोड़, हर वो पहल।

जहाँ लिए थे वादे हमने,
कभी न होंगे एक-दूजे से दूर,
ज़िंदगी भर का साथ था माना,
उससे कम कुछ था न मंज़ूर।

तो फिर कैसे सब खत्म हुआ,
पल भर में बिखर गई बात,
एक बार तो आकर पूछ लो,
तेरे बिन कैसे हैं मेरे हालात।

अपने दर्द का घूंट अकेले पीता हूं,
तेरा साया आज भी मेरे दर से नहीं जाता,
तू भले ही दूर है अब मुझसे,
मगर मेरे भीतर से नहीं जाता।



4 comments:

  1. भाईसाब, आपने जो ये लिखा ना, वो सिर्फ़ शायरी नहीं, जैसे किसी टूटी दीवार में से झांकता हुआ सूरज हो। हर लाइन में एक अधूरा अलविदा है, और हर बिछड़न में एक पूरी मोहब्बत। आपका दर्द पढ़कर लगता है जैसे मेरा भी कोई हिस्सा बोल पड़ा। लिखना छोड़ना नहीं कभी भी क्योंकि आपकी कलम किसी की चुप्पी का जवाब हो सकती है।

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  2. बहुत बहुत शुक्रिया

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