तुम राम बनो रहीम बनो,
इस देश के महामहिम बनो
और तोल सके जो धर्म-अधर्म को,
तुम वो आधुनिक मशीन बनो...
सत्ता का तुम को गर्व ना हो,
ना सिर्फ जीत की अभिलाषा हो
तुमसे भय हो हर सशक्त को
पर तुमसे हर गरीब को आशा हो
तेरे बल से तू जग को जीते
पर कर्म परायण हो युधिष्ठिर जैसा
जब बात न्याय धर्म की आये
निर्णय में अपना पराया कैसा
जैसे भेद न करता सूर्य
राजा और रंक मे
जैसे शीतलता देने की है प्रकृति
कोशों मील धूम रहे मयंक मे
तू भी अपना धर्म निभाना
वजह झगड़े की जड़, जोरु या जमीन हो
तुम हो प्रधान सेवक जनमानस के
चाहे ओहदे से महामहिम हो ||
जय हिन्द।
सुन्दर
ReplyDeleteTruly inspiring 🙏
ReplyDeleteAwesome bhaiya 🥰🥰😀
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है ... अच्छे बंध हैं सभी ...
ReplyDeleteये तो जैसे हर उस शख्स के लिए आईना है जो कुर्सी पर बैठते ही खुद को खुदा समझने लगता है। हर लाइन में एक उम्मीद है, एक सीख है। सूर्य और चंद्रमा जैसे प्राकृतिक प्रतीकों के माध्यम से निष्पक्षता और शीतलता की बात करना बेहद सुंदर और प्रतीकात्मक है। यह रचना न सिर्फ एक संदेश देती है, बल्कि सत्ता में बैठे हर व्यक्ति को आत्मचिंतन के लिए प्रेरित भी करती है।
ReplyDelete