Saturday, April 6, 2024

तन खा गई तनख्वाह...


 तन खा गई तनख्वाह मेरी

वेतन बे वतन कर गई

अस्थायी ये नौकरी मेरी

ना जाने क्या क्या सितम कर गई


समय की परवाह बगैर

चाकी सा पिसता रहता हूं

वक्त से तालमेल बिठाने को

बे वक़्त घिसता रहता हूं


लहू मे भी घुल रहा

संघर्ष की अदृश्य गोलियाँ

बन रहा पाश्चात्य फिरंगी सा

भूल गया अपनी भाषा बोलियाँ


फिर भी कम लगती है उनको

मेरी मेहनत मजदूरियाँ

सल्फांस की गोलियाँ रखी है मगर

खाने नहीं देती मजबूरियाँ


नन्ही उम्र मे ही छोड़ आए थे 

गाँव के चार चौपाल सब 

अजनबी समझने लगे हैं 

अपने ही बाल गोपाल अब 


कमाई ने कम 'आय' ही दिया 

सपनों मे संकट की बदली छा गई 

अब किसको जा के बताऊँ 'जनाब' 

तनख्वाह मेरी तन खा गई 



Tuesday, March 5, 2024

अब सीता की बारी है...


 कहाँ त्रेता द्वापर के बंधन मे

बंधने वाली ये नारी है

कल युद्ध लड़ा था श्रीराम ने

अब सीता की बारी है

हर युग मे प्रभु नहीं आयेंगे 

त्रिया स्वाभिमान बचाने को 

बनो सुदृढ़ कर लो बाजुओं को सख्त

तैयार रहो हथियार उठाने को

तुमको ही करनी है फतह 

लंका और कुरुक्षेत्र भी

मौन ही रहने दो बनकर धृतराष्ट्र समाज को

कितने जन्म लेंगे त्रि नेत्र भी

न कोई रावण न कोई दुशासन

टिक पाएगा तेरे प्रहार से

कब तक विनय करके मांगेगी

हक जड़ अधिकाय संसार से

हाथ बढ़े जो चीर हरण को

या सतित्व को ठेस पहुंचाने को

बन काली भर अग्नि हुंकार

रक्त रंजित नेत्र काफी है भू पटल हिलाने को



Wednesday, February 21, 2024

पर चूहे से भी डरती है..


 हवा से दोस्ती है उसकी

कलियों से बातेँ करती है

शेरनी सी छवि रखती है वो

पर, चूहे से भी डरती है


वाचाल है सबकुछ उगल देती

बातों को मन मे न रख पाती है

खुद ही खुद की खिल्ली उड़ाती

और जी भरकर हंस भी जाती है


अभी तो दुनियां देखी ही है

तजुर्बा फिर भी तमाम है

परिपूर्ण के करीब है अपने कार्यो मे

फिर भी बातों से लगती नादां है


जुड़ रहा उसकी जिंदगी मे

एक नया अध्याय है

वो परेशानी मे भी हँसा देती सबको

वो खुशियों की पर्याय है


खुशियाँ मिले तमाम उसको

घर परिवार मे भी खुशहाली हो

सपने उसके हो सब पूरे

वो परिवार की अंशुमाली हो ||