Saturday, May 11, 2024

सबके पास माँ नहीं होती...


 जिसके रूठ जाने से कबूल
मंदिर मे पूजा और मस्जिद मे अजां नहीं होती
कदर किया करो "दोस्तों" 
बेवजह प्यार लुटाने को
सब के पास माँ नहीं होती ||

जब साया हो माँ की ममता का
मुश्किल दौर भी कट जाता है
तुम्हें खुशियों का जहान देने वाली का
वक़्त चंद लम्हों मे सिमट जाता है
नि:स्वार्थ प्रेम की प्रतिमा के
हर चीज बयां नहीं होती
कभी तुम भी पूछ लिया करो हाल उसका "दोस्तों" 
बेशुमार प्यार लुटाने को
सब के पास माँ नहीं होती ||

जाने का उसका घाव 
भगवान भी भर नहीं पता
सबसे रिश्ते धूमिल हो जाते हैं 
चाहे वो इंसान हो या भाग्य विधाता 
कुनबे को जिनसे सीचा, सम्भाला 
उसके बगैर 'अना' नहीं होती 
ध्यान रखा करो "दोस्तों" 
अपने हर ग़म को बांटने के लिए 
सब के पास माँ नहीं होती ||

जिसकी मौजूदगी ही घर मे 
एक नई ऊर्जा का संचार कर देती है 
खुद की झोली खाली हो भले 
सब की खुशियों से भर देती है 
उसका भी कभी हाथ बटां दो 
मत सोचो उसको थकां नहीं होती 
वक़्त रहते थोड़ा प्यार जता लो "दोस्तों" 
प्यार जताने को सब के पास माँ नहीं ||

तुम्हारे दुःख दर्द आंसू हरने का 
जिसने जिम्मा उठाया है 
रब हर घर की रखवाली कर नहीं सकता 
शायद तभी उसने माँ को बनाया है 
कली भी बिन ममता के छांव 
स्वयं जवां नहीं होती 
सज़ों के रखो इन बुढ़ी तरसती आँखों को "दोस्तों" 
भूखे पेट भी आशीर्वाद देने को 
सब के पास माँ नहीं होती ||
[अना = आत्म प्रदर्शन, अभिमान]

HAPPY MOTHER'S DAY ❤️



Saturday, April 6, 2024

तन खा गई तनख्वाह...


 तन खा गई तनख्वाह मेरी

वेतन बे वतन कर गई

अस्थायी ये नौकरी मेरी

ना जाने क्या क्या सितम कर गई


समय की परवाह बगैर

चाकी सा पिसता रहता हूं

वक्त से तालमेल बिठाने को

बे वक़्त घिसता रहता हूं


लहू मे भी घुल रहा

संघर्ष की अदृश्य गोलियाँ

बन रहा पाश्चात्य फिरंगी सा

भूल गया अपनी भाषा बोलियाँ


फिर भी कम लगती है उनको

मेरी मेहनत मजदूरियाँ

सल्फांस की गोलियाँ रखी है मगर

खाने नहीं देती मजबूरियाँ


नन्ही उम्र मे ही छोड़ आए थे 

गाँव के चार चौपाल सब 

अजनबी समझने लगे हैं 

अपने ही बाल गोपाल अब 


कमाई ने कम 'आय' ही दिया 

सपनों मे संकट की बदली छा गई 

अब किसको जा के बताऊँ 'जनाब' 

तनख्वाह मेरी तन खा गई 



Tuesday, March 5, 2024

अब सीता की बारी है...


 कहाँ त्रेता द्वापर के बंधन मे

बंधने वाली ये नारी है

कल युद्ध लड़ा था श्रीराम ने

अब सीता की बारी है

हर युग मे प्रभु नहीं आयेंगे 

त्रिया स्वाभिमान बचाने को 

बनो सुदृढ़ कर लो बाजुओं को सख्त

तैयार रहो हथियार उठाने को

तुमको ही करनी है फतह 

लंका और कुरुक्षेत्र भी

मौन ही रहने दो बनकर धृतराष्ट्र समाज को

कितने जन्म लेंगे त्रि नेत्र भी

न कोई रावण न कोई दुशासन

टिक पाएगा तेरे प्रहार से

कब तक विनय करके मांगेगी

हक जड़ अधिकाय संसार से

हाथ बढ़े जो चीर हरण को

या सतित्व को ठेस पहुंचाने को

बन काली भर अग्नि हुंकार

रक्त रंजित नेत्र काफी है भू पटल हिलाने को