Thursday, July 14, 2022

तेरे तलबगार नहीं होंगे....


 हम एक दूसरे के अब तलबगार नहीं होंगे

तुमने मन बनाया है बिछड़ने का तो ये भी ठीक है 

तेरी किसी महफिल मे हम भी शुमार नहीं होंगे


शायद अब कभी खुशियों से हम भी बेजार नहीं होंगे

ग़र तेरे चेहरे पर आती है शिकन देख मेरी परछाई भी

वादा रहा इस सूरत के अब कभी तुम्हें दीदार नहीं होंगे


कल भी महफिलें सजेगी पर वो बहार नहीं होंगे

दवा दारू बनेगी और मैखाने अस्पताल

हम पड़े रहेंगे बिस्तर मे मगर बीमार नहीं होंगे


सच्चाई छापे शायद तब वो अखबार नहीं होंगे

बोली लगेगी और कोड़ी के भाव बिकेंगे ज़ज्बात

मगर जो कीमत दे सके वफा की वो बाजर नहीं होंगे


एक दिन तुम भी टूटोगे सपने सभी तेरे भी साकार नहीं होंगे

बहुत तड़प के करोगे याद और मिलने की मिन्नत

मगर उस दिन मिलने को तुमसे हम सरकार नहीं होंगे



Sunday, June 19, 2022

पापा


 माँ जग की जननी है तो पापा पालनहार हैं

इस दुनियां मे रब का देखो वो दूजा अवतार हैं


दिन की तपिश मे है तपते रातों की नींद गंवाई है

हर कदम सिखाया चलना मुझमे उनकी परछाई है


बिन पापा अस्तित्व मेरा भी सच है मिट ही जाता

दुनियां की इस भीड़ मे अक्सर मेरा मन भी घबराता


लेकिन मेरे अकेलेपन मे साथ खड़े वो होते हैं 

अपने आराम को गिरवी रखकर वो मेरे सपने संजोते हैं 


पंख बने वो मेरे और मुझको सपनों का आसमान दिया 

पापा ही है जिन्होंने हमको खुशियों का जहान दिया 


रब से मुझको शिकवा नहीं बिन माँगे सबकुछ पाया है

शुक्रिया उस रब का जो इस घर मे मुझे जन्माया है


खुद लिए अब कुछ और मांगू इतना भी खुद गर्ज नहीं

माँ पापा रहे सदा सलामत इससे ज्यादा कुछ अर्ज़ नहीं



Thursday, June 9, 2022

बगावत की लहर.....


 क्यूँ बगावती तेवर हैं लोगों के

क्यूँ देश जल रहा दंगों के आग मे

फिर किसने लिख दी नफरत के कलम से

ये विध्वंस राष्ट्र के भाग मे


क्यूँ मरने मारने की खबर आती है 

क्यूँ धर्म पे बात विवाद हो रहे हैं पैनलों मे

क्यूँ नफरत के बीज़ बोते सुनायी देते हैं 

कुछ हुक्मरान टीवी चैनलों मे


क्या देश अपने भाई चारे का

अस्तित्व खोकर रह गया

जो कल तक था सभी धर्मों का देश

अब चंद लोगों का बन कर रह गया


वो हिन्दू मुश्लिम करके अपना

वोट बैंक तगड़ा कर रहे

ये ना समझ उनकी बातों मे आकर

आपस मे झगड़ा कर रहे


पढ़े लिखे होकर भी सभी

जाहिल सी हरकत करते हैं

खुद के सोच का गला घोंट कर

जमूरे सी करतब करते हैं


सिर्फ दंगों से ना देश जला रहा 

तुम्हारा भविष्य भी है जल रहा

वो तुमको सीढ़ी बनाकर आगे बढ़ने वाला 

तुमको खाक की धूल सा कुचल रहा


अब तो जागो मेरे देश की जनता

कुछ अपनी बुद्धि का भी प्रयोग करो

छोड़ो आपस की रंजिशें और

देश के विकास मे सहयोग करो



Thursday, May 12, 2022

मन करता है....

 

मन करता है दूर कहीं 

डूबते सूरज को देखूं

शांत बहते किसी सागर मे

एक कंकड़ तबीयत से फैंकू 


कुछ पल छीन कर इस दुनिया से

खुद के पूरे कुछ ख्याब करूँ

मन करता है पंख फैलाकर

इस नीलगगन की सैर करूं


ये घुटन, पाबंदी और जिम्मेदारी

सब कुछ पल भर मे उतार दूँ 

मन करता है सदियों की ज़िन्दगी 

बस एक पल मे ही गूजार दूँ 


अब कैसे बयां करूँ शब्दों में 

कितना कुछ दबाया है मन मे 

मन करता है लिखता जाऊँ 

क्या क्या सहा है इस जीवन मे... 

                                  (हैरी)



Thursday, April 28, 2022

बहुत याद आते हैं वो दिन....

 



बहुत याद आते है वो दिन

वो प्राईमरी की कक्षाएं, 

वो जूनियर की यादें

वो हाई स्कूल की यारी

और पेपरों की तैयारी|


वो इंटर की बचकानी बातें

वो प्रिन्सिपल से डर

वो स्कूल से ट्यूशन

और ट्यूशन से घर|


वो कॉलेज के लेक्चर

वो कैन्टीन की चाय

वो बिल के लिए बहस

और बेवजह की लड़ाई|


वो नोट्स की शेयरिंग (Sharing) 

वो कुछ भी कर जाने वाली डेयरिंग (Daring) 

वो वन (One) नाइट फाइट की थ्योरी (Theory) 

और पुराने प्रैक्टिकल नोटबुक की चोरी|


वो दोस्तों के साथ वैकेसन (Vacation) 

वो फाइनल एक्जाम की टेंशन

वो हास्टल की आखिरी रात

और वो हमेसा टच मे रहने वाली बात|




अब भी भूला नहीं हूँ मैं

वो स्कूल से कालेज तक का सफर

बहुत दोस्त मिले कुछ बिछड़ भी गए

बस इन्हीं यादों के सहारे

कर रहा हूं जिंदगी की गुजर बसर...

               शुक्रिया दोस्तों