"कविता कोई पेशा नहीं है, यह जीवन का एक तरीका है। यह एक खाली टोकरी है; आप इसमें अपना जीवन लगाते हैं और उसमें से कुछ बनाते हैं।"
Sunday, September 17, 2023
ठेठ पहाड़ी चिट्ठा : CONTACT US
Saturday, September 16, 2023
मैं किसी के लिए बेशकीमती, किसी के लिए बेकार हूँ
मैं कब कहाँ क्या लिख दूँ
इस बात से खुद भी बेजार हूँ
मैं किसी के लिए बेशकीमती
किसी के लिए बेकार हूँ
समझ सका जो अब तक मुझको
कायल मेरी छवि का है
मुझमे अंधकार है अमावस सा
मुझमे तेज रवि का है
अब कैसे पलट दूँ परिस्थितियों को
हर रोज मुश्किलों से होता दो चार हूँ
मैं किसी के लिए ध्रुव तारा सा
किसी के लिए बेकार हूँ
मैं निराकार मे भी आकर भर दूँ
मैं सैलाब से लड़ता किनारा हूँ
मैं सकल परिस्थिति मे खुद का भी नहीं
मैं संकट में सदैव साथ तुम्हारा हूं
मैं रेगिस्तान मे फूल उगाने को
हर पल रहता तैयार हूँ
मैं किसी के लिए आखिरी उम्मीद
किसी के लिए बेकार हूँ
मैं भेद नहीं करता धर्मों मे
पर शंख, तिलक मेरे लिए अभिमान है
मैं भक्त भले प्रभु श्रीराम का
पर एक मेरे लिए गीता और कुरान है
मैं छेड़छाड़ नहीं करता संविधान से
पर हक के लिए लड़ता लगातार हूँ
मैं किसी के लिए सच्चा नागरिक
किसी के लिए बेकार हूँ
Friday, July 7, 2023
इन्कार कर रहा हूँ
जीते जी चार कंधों का इंतजार कर रहा हूं
मैं हर दर पे मौत की दुआ हर बार कर रहा हूँ
जो चले गए वो ना लौटेंगे जो पास हैं वो साथ नहीं
लोग भरोसा करते है लकीरों पे, मैं खुदा की रहमत से भी इंकार कर रहा हूँ
जो उजड़ गए है इमारत सपनों के
मैं दिलों जान से उन्हें बेजार कर रहा हूँ
तुम खुश हो जहां भी हो ये भी सही तो है
अब मैं ही खुद को तेरी महफिल से दर किनार कर रहा हूँ
कभी लगता था तुम ही हो सबसे करीब मेरे
अब खुद के ज़ख्मों को कुरेद के बीमार कर रहा हूँ
घाव भर तो गए छाले अंदरूनी आज भी हैं मगर
तेरे आने की आस में अब भी अपना वक्त बेकार कर रहा हूँ
कभी मुझे मोहब्बत थी ज़िंदगी के हर लम्हे से
अब खुद ही खुद को डुबाने के लिए तैयार कर रहा हूँ
अब ना तुम रहे ना वो लम्हे ना दिलों मे जगह अपनी
इसलिए खुद को तोड़ कर तार तार कर रहा हूँ
हर टूटे टुकड़े मे अब सिर्फ मेरा आयाम होगा
ना किसी की दास्तान ना नाम होगा
अब खुद ही खुद को कोसते रहेंगे जिंदगी भर
ना किसी से उम्मीद ना किसी पे इल्ज़ाम होगा
Sunday, April 30, 2023
आओ धरा को संचय करें
जहां, हमने नश्वर जीवन पाया है
जिसका पीया अमृत जल और,
प्राण अन्न जिसका खाया है
सदियों पुराना इतिहास जिसका,
भिन्न भिन्न उत्पत्ति की कहानी है
नष्ट हो रहीं जो मनु कृत्यों से,
इसको हमने बचानी है
धरती माँ के वृक्ष काट रहे,
बारूदी दम पे धरा बांट रहे
सूख रहे जल प्रपात भू मंडल के,
सूख रहा सब पानी है
कहीं कर जल संरक्षण कहीं वृक्षारोपण
फिर नव जीवन धरा पे लानी है
जब धरा का जर्रा जर्रा,
हरियाली से गुलजार होगा
कभी ना सूखे की मार पड़ेगी,
हर पल बसंत बाहर होगा
रिमझिम मेघ बरसेगा अम्बर से,
मिट्टी की खुशबु बयार होगा
जब धरती पर खुशहाली होगी,
तब सुखी अपना संसार होगा
जो बारूदी खेल आज,
खेल रहा जहान है
गगन भेदी मिसाइलों से,
उठा रहा तूफान है
परिणाम से इसके अनभिज्ञ वो,
खुद को सोचता महान है
धरती का सबसे बड़ा विनाशक,
खुद आज बना इंसान है
ओजोन परत मे छिद्र हो रहा,
ग्लोबल वार्मिंग धरा को तपा रहा
हर मौसम सर्प दंश सा लगता,
हर साल नया कुछ दिखा रहा
क्यूँ खेल रहे हो धरती से,
जिसने माँ बन सबको पाला है
जाग जाओ रोक लो खुद को,
वर्ना फिर प्रलय आने वाला है
उठो जागो धरती माँ के लाडलों,
फिर करना माँ का श्रृंगार है
बहुत लिया है इस धरती से,
कुछ अर्पण करना ही संस्कार है
आओ चमन मे फिर फूल खिलाकर,
करते पवित्र विचार है
फिर से गरिमामय करते है धरा को,
जिसकी ये हकदार है
अस्तित्व खतरे मे जड़ मानव का,
हर संकेत ये हमको बता रहा
खतरे के बादल मंडरा रहे हैं,
फिर भी न अफसोस जता रहा
मत बन अचेत मन में स्मरण कर,
क्यूँ दिन अपने घटा रहा
पृथ्वी न खुद को शून्य मे समा ले,
जागो मैं तुमको जगा रहा
जागो मैं तुमको जगा रहा.......
Tuesday, February 28, 2023
तू मेरे अन्दर से नहीं जाती....
बिखरे अल्फाजों की माला
गढ़ना कभी आसान ना था
खामोशी तेरे लबों की
पढ़ना कभी आसान ना था
फिर भी सुनी दिल की
और भावनाओं को लिख डाला
पिरोए लफ़्ज़ और
बन गई प्रीत की माला
अब सिर्फ तुझ पे लिखना है
और तेरी आंखे ही पढ़ना है
खामोशी को शब्द बनाकर
अपनी तन्हाई से लड़ना है
लिखना है बिछड़ने का मंज़र
लिखना प्रेम के वो पल हैं
लिखना है तेरी मेरी कहानी
लिखना हर वो एक स्थल है
जहां ली थी कसमें हमने
कभी होने की ना दूर
जिंदगी भर का साथ से कम
कुछ ना था दोनों को मंजूर
फिर कैसे खत्म हुआ सब पल मे
कैसे भूल गए हर बात
एक बार तो आकर पूछ लो
तुझ बिन कैसे हैं मेरे हालात
अपने दर्द का घूंट अकेले पी रहा हूं
तेरा साया मेरे दर से नहीं जाता
तू भले ही दूर है अब मुझसे
मगर तू मेरे अन्दर से नहीं जाता
Thursday, December 15, 2022
क्या करूँ इस सड़क का अब...?
Wednesday, October 26, 2022
दोगलापन से इन्कार है....
जो 70 वर्षो से मिला नहीं वो आज सबको चाहिए
कैसी दोहरी मानसिकता ले के जी रहे हैं लोग
जाने क्यूँ नफ़रतों का जहर पी रहे हैं लोग ?
क्यूँ नहीं पूछता है उनसे कोई आज भी
डुबो दी देश की नैया और 70 वर्ष किया राज भी
आजकल जो ये बात हिन्दू हित की हो रहीं
गुर्दे छिल रहे है जहाँ के, एक कौम दिन रात रो रहीं
होके अपनी धरती के भी, अत्याचार सहे मुगलों के
झेला जजिया कर भी और हुक्म माने पागलों के
सभी प्रसन्न थे जब हिन्दू घर मे था पिट रहा
मंदिरों को थे तोड़ रहे और सनातन था मिट रहा !?
थे लुटेरे वो सभी लूटने तो आए थे
घर के जय चंदो के बदौलत वो भारतभूमि मे टिक पाए थे ।
आज इतिहास जिनका झूठा गुणगान करता है
बादशाह महान वो हत्यारे खुद को कहते आये थे ।
कैद करके बाप को भाई का सीना चीर कर
वो सुल्तान महान कैसे जो हत्या करके बैठा तासीर पर
पवित्र मंदिरों को लुटा जिसने बस्तियाँ उजाड़ दी
गलत इतिहास पढ़ा के अब तक कई पुश्तें बिगाड़ दी
ना कोई गलत पढ़ेगा अब; ना लुटेरों का बखान होगा
अब शिवा जी, महाराणा और पृथ्वीराज का गुणगान होगा
कैसे गोरा बादल ने अकेले मुगलिया सल्तनत हिला दी
शीश कटा कर उनके केवल धड़ ने जीत ने दिला दी
सब ही थे दगाबाज, फरेब था उनके खून में,
इंसानियत का कत्ल करते थे वो जड़ जुनून में
अय्याशी और मक्कारी में उनका भाग्य तय हुआ
फिर देश बचाने हेतु सम्राट चन्द्रगुप्त का उदय हुआ
जब सह रहा था सितम हिन्दू ,सबको खुशी थी जीने में
अब अपना हक मागने लगे तो साँप लगे लोटने सीने मे
बात होती मोबलॉन्चिंग पर, कश्मीरी हिन्दु पे आँख बंद हैं
बस यही दोगलापन तुम्हारा हमको वर्षो से ना पसंद है
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इस वीभत्स कृत्य का कोई सार नहीं होगा इससे बुरा शायद कोई व्यवहार नहीं होगा तुम्हें मौत के घाट उतार दिया कुछ नीच शैतानों ने सिर्फ मोमबत्ती ...
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हया भी कोई चीज होती है अधोवस्त्र एक सीमा तक ही ठीक होती है संस्कार नहीं कहते तुम नुमाइश करो जिस्म की पूर्ण परिधान आद्य नहीं तहजीब होती है ...