Monday, March 8, 2021

मैं गैर था उसके लिये गैर ही रह गया...

बनाया था जो मैंने सपनों का महल ढह गया
मैं गैर था उसके लिए गैर ही रह गया

बहुत जद्दोजहद की उसे पाने को लकीरो से 
दिल ऐसा टूटा लहू आँखों से बह गया 

मेरे ख्वाब याद सांसो तक मे समाया था वो.. 
पल भर में ही बेवजह अलविदा कह गया 

लड़ रहा था खुदा तक से भी जिसे पाने के लिए 
खुदा कसम उसी के लिए सबकुछ चुपचाप सह गया 

कड़वी मगर एक सच्चाई से वाकिफ कर गया वो 
वर्षों तक वफा की थी मैंने और अकेला रह गया 

मैं गैर था उसके लिए गैर ही रह गया..... 
                                            (हैरी)

21 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 07 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" सोमवार 08 मार्च 2021 को साझा की गयी है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. धन्यवाद गुरुदेव 🙏

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  4. दिल से निकली चुपके से दूर तलक सुनाई देने वाली आवाज लिखी है आपने

    बहुत खूब!

    एक सुझाव-
    एक दिन में एक ही रचना ब्लॉग पर पोस्ट करो तो बेहतर रहेगा, पढ़ने के लिए समय जरुरी है मिलता है, शुरुवात में मैं भी इस बात को नहीं समझती थी लेकिन अब समझ आता है कि पोस्ट अंतराल कम से कम 4-5 दिन का हो तो बहुत अच्छा रहता है

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    1. जरूर आपकी बातों का स्मरण किया जाएगा. आपका तहेदिल से आभार

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  5. एकदम सही परिचय दिया है आपने अपने प्रोफाइल में कि ---
    न आग उगलता शब्दों से, न घाव पुराने क़ुदरता हूँ
    मैं सीधे-सीधे शब्दों से, सीधे दिल में उतरता हूँ

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  6. लड़ रहा था खुदा तक से भी जिसे पाने के लिए
    खुदा कसम उसी के लिए सबकुछ चुपचाप सह गया ।

    दर्दे दिल की दास्तान और ये क्या क्या न करा दे ।
    खूबसूरत ग़ज़ल

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  7. दिल के दर्द को शब्दों में बाखूबी पिरोया है आपने,बेहतरीन भावाभिव्यक्ति

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  8. बहुत बहुत आभार आपका सब का

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  9. सुन्दर और स्पष्ट भाव...

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  10. कृपया अन्य रचनाओं को भी पढ़े एक बार.. बहुत मन से लिखीं हैं

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