अति ऐतबार भी रिश्तों को अक्सर डूबा देता है
लगी हो आग जिंदगी में तो पत्ता- पत्ता हवा देता है
लिहाज़ रखते- रखते रिश्ते का बेहिसाब लुटे हम
ज़ख्म नासूर बना हो तो मरहम भी सजा देता है
ख्याल आया है फिर ख्वाहिशों में रहने वाले का
और याद भी आया है तिरस्कार, झूठे हवाले का
हमें तो जूठन भी लज़ीज़ लगा करती थी उसकी
देना पड़ा हिसाब उसे ही एक -एक निवाले का
पाया था उसे अपना सबकुछ गवारा करके
हमीं से ही बैठा है नासमझ किनारा करके
उससे बिछड़ने का ख़्याल भी बिखरा देता था हमें
चल दिया है आज हमें वह बेसहारा करके
डूबना ही गर मुकद्दर है, तो डूबा ले पानी
हम तो चुल्लू में डूबने से हो बैठे हैं नामी
उसकी तो निगाहें भी काफ़ी थीं हमें डुबाने को...
जाने क्यों झूठ की उसे लानी पड़ी होगी सुनामी
Bahut sundar rachna .... Kabiletarif
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबेहतरीन व्याख्या है 🍁
ReplyDelete👏👏👏👏
ReplyDelete👏👏👏👏
ReplyDeleteBehtrin 😍😍
ReplyDeleteजाने क्यों झूठ की उसे लानी पड़ी होगी सुनामी ....... वाह, वाह
ReplyDeleteअति सुन्दर 🤩
Bahut sundar lines likhi h... 💫💫
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना,,,
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