"कविता कोई पेशा नहीं है, यह जीवन का एक तरीका है। यह एक खाली टोकरी है; आप इसमें अपना जीवन लगाते हैं और उसमें से कुछ बनाते हैं।"
Thursday, December 15, 2022
क्या करूँ इस सड़क का अब...?
Wednesday, October 26, 2022
दोगलापन से इन्कार है....
जो 70 वर्षो से मिला नहीं वो आज सबको चाहिए
कैसी दोहरी मानसिकता ले के जी रहे हैं लोग
जाने क्यूँ नफ़रतों का जहर पी रहे हैं लोग ?
क्यूँ नहीं पूछता है उनसे कोई आज भी
डुबो दी देश की नैया और 70 वर्ष किया राज भी
आजकल जो ये बात हिन्दू हित की हो रहीं
गुर्दे छिल रहे है जहाँ के, एक कौम दिन रात रो रहीं
होके अपनी धरती के भी, अत्याचार सहे मुगलों के
झेला जजिया कर भी और हुक्म माने पागलों के
सभी प्रसन्न थे जब हिन्दू घर मे था पिट रहा
मंदिरों को थे तोड़ रहे और सनातन था मिट रहा !?
थे लुटेरे वो सभी लूटने तो आए थे
घर के जय चंदो के बदौलत वो भारतभूमि मे टिक पाए थे ।
आज इतिहास जिनका झूठा गुणगान करता है
बादशाह महान वो हत्यारे खुद को कहते आये थे ।
कैद करके बाप को भाई का सीना चीर कर
वो सुल्तान महान कैसे जो हत्या करके बैठा तासीर पर
पवित्र मंदिरों को लुटा जिसने बस्तियाँ उजाड़ दी
गलत इतिहास पढ़ा के अब तक कई पुश्तें बिगाड़ दी
ना कोई गलत पढ़ेगा अब; ना लुटेरों का बखान होगा
अब शिवा जी, महाराणा और पृथ्वीराज का गुणगान होगा
कैसे गोरा बादल ने अकेले मुगलिया सल्तनत हिला दी
शीश कटा कर उनके केवल धड़ ने जीत ने दिला दी
सब ही थे दगाबाज, फरेब था उनके खून में,
इंसानियत का कत्ल करते थे वो जड़ जुनून में
अय्याशी और मक्कारी में उनका भाग्य तय हुआ
फिर देश बचाने हेतु सम्राट चन्द्रगुप्त का उदय हुआ
जब सह रहा था सितम हिन्दू ,सबको खुशी थी जीने में
अब अपना हक मागने लगे तो साँप लगे लोटने सीने मे
बात होती मोबलॉन्चिंग पर, कश्मीरी हिन्दु पे आँख बंद हैं
बस यही दोगलापन तुम्हारा हमको वर्षो से ना पसंद है
Saturday, October 8, 2022
संक्षिप्त रामलीला
Monday, August 22, 2022
मैं बस नाम की सुहागन...
मैं ममता रहित एक बागवां की कली
दर्द के सन्ताप मे पलकर बड़ी हूँ
बचपन मे भी बिल्कुल तन्हा थी
आज भी अकेले खड़ी हूँ
बेरहम वक्त से लड़ पोंछ आंसू को
जिंदगी के हर इम्तिहाँ को पास किया
कितने उतार चढ़ाव आए जीवन मे, लेकिन
ना मैंने खुद को निराश किया
अपने खुशियाँ की परवाह नहीं की
ना अपने सपनों का ध्यान रखा
कर दिए हाथ पीले बाबुल ने
दूजे घर खुद का समान रखा
अब जिसको सबकुछ मान
हर रिश्ता पीछे छोड़ आयी थी
मानों फिर वक़्त रूठ गया था मुझसे
फिर इम्तिहाँ की घड़ी आयी थी
मैं जिसको अपना परमेश्वर समझकर
पूरी श्रद्धा से बलिहारी जा रहीं थीं
अचानक आज उसके जिस्म से
किसी और के इत्र की खुशबु आ रहीं थीं
मैं हैरां परेशाँ हो गई
किस्मत के आगे हार रहीं थीं
वो किसी और गुल का मुरीद हो रहा
जिसके लिए मैं खुद को सँवार रहीं थीं
पैरों तले जमीन न रहीं
क्यूँ वक्त ने मुझसे हरजाई की
मैंने तो सिद्दत से रिश्ता निभाया
फिर क्यूँ उसने ऐसे बेवफाई की
उम्र में बड़ी और चरित्र शून्य
वो किसी और के नाम का जाप जपने लगा
मुझे वक्त ने ठगा ता-उम्र
फिर कोई अपना ठगने लगा
हाय रे किस्मत ये कैसे सितम है
अब सिंदूर का रंग फीका होने लगा
जो मेरे लिए सबकुछ था मेरा
वो आज और किसी का होने लगा
उस खुदा ने ममता की छांव छीना
मैं किस्मत समझकर सब सह गई
अब सिंदूर दगा पे उतर आया है
मैं सिर्फ नाम की सुहागन रह गई
Thursday, July 14, 2022
तेरे तलबगार नहीं होंगे....
तुमने मन बनाया है बिछड़ने का तो ये भी ठीक है
तेरी किसी महफिल मे हम भी शुमार नहीं होंगे
शायद अब कभी खुशियों से हम भी बेजार नहीं होंगे
ग़र तेरे चेहरे पर आती है शिकन देख मेरी परछाई भी
वादा रहा इस सूरत के अब कभी तुम्हें दीदार नहीं होंगे
कल भी महफिलें सजेगी पर वो बहार नहीं होंगे
दवा दारू बनेगी और मैखाने अस्पताल
हम पड़े रहेंगे बिस्तर मे मगर बीमार नहीं होंगे
सच्चाई छापे शायद तब वो अखबार नहीं होंगे
बोली लगेगी और कोड़ी के भाव बिकेंगे ज़ज्बात
मगर जो कीमत दे सके वफा की वो बाजर नहीं होंगे
एक दिन तुम भी टूटोगे सपने सभी तेरे भी साकार नहीं होंगे
बहुत तड़प के करोगे याद और मिलने की मिन्नत
मगर उस दिन मिलने को तुमसे हम सरकार नहीं होंगे
Sunday, June 19, 2022
पापा
इस दुनियां मे रब का देखो वो दूजा अवतार हैं
दिन की तपिश मे है तपते रातों की नींद गंवाई है
हर कदम सिखाया चलना मुझमे उनकी परछाई है
बिन पापा अस्तित्व मेरा भी सच है मिट ही जाता
दुनियां की इस भीड़ मे अक्सर मेरा मन भी घबराता
लेकिन मेरे अकेलेपन मे साथ खड़े वो होते हैं
अपने आराम को गिरवी रखकर वो मेरे सपने संजोते हैं
पंख बने वो मेरे और मुझको सपनों का आसमान दिया
पापा ही है जिन्होंने हमको खुशियों का जहान दिया
रब से मुझको शिकवा नहीं बिन माँगे सबकुछ पाया है
शुक्रिया उस रब का जो इस घर मे मुझे जन्माया है
खुद लिए अब कुछ और मांगू इतना भी खुद गर्ज नहीं
माँ पापा रहे सदा सलामत इससे ज्यादा कुछ अर्ज़ नहीं
Thursday, June 9, 2022
बगावत की लहर.....
क्यूँ देश जल रहा दंगों के आग मे
फिर किसने लिख दी नफरत के कलम से
ये विध्वंस राष्ट्र के भाग मे
क्यूँ मरने मारने की खबर आती है
क्यूँ धर्म पे बात विवाद हो रहे हैं पैनलों मे
क्यूँ नफरत के बीज़ बोते सुनायी देते हैं
कुछ हुक्मरान टीवी चैनलों मे
क्या देश अपने भाई चारे का
अस्तित्व खोकर रह गया
जो कल तक था सभी धर्मों का देश
अब चंद लोगों का बन कर रह गया
वो हिन्दू मुश्लिम करके अपना
वोट बैंक तगड़ा कर रहे
ये ना समझ उनकी बातों मे आकर
आपस मे झगड़ा कर रहे
पढ़े लिखे होकर भी सभी
जाहिल सी हरकत करते हैं
खुद के सोच का गला घोंट कर
जमूरे सी करतब करते हैं
सिर्फ दंगों से ना देश जला रहा
तुम्हारा भविष्य भी है जल रहा
वो तुमको सीढ़ी बनाकर आगे बढ़ने वाला
तुमको खाक की धूल सा कुचल रहा
अब तो जागो मेरे देश की जनता
कुछ अपनी बुद्धि का भी प्रयोग करो
छोड़ो आपस की रंजिशें और
देश के विकास मे सहयोग करो
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इस वीभत्स कृत्य का कोई सार नहीं होगा इससे बुरा शायद कोई व्यवहार नहीं होगा तुम्हें मौत के घाट उतार दिया कुछ नीच शैतानों ने सिर्फ मोमबत्ती ...
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हया भी कोई चीज होती है अधोवस्त्र एक सीमा तक ही ठीक होती है संस्कार नहीं कहते तुम नुमाइश करो जिस्म की पूर्ण परिधान आद्य नहीं तहजीब होती है ...