जो बन सहोदर उसने छुरा पीठ पे घोंपा था
हम शांति अमन का पैगाम भेजते
उनका कुछ और ही मंसूबा था
जिनको धड़ काट के आधा शरीर दिया
पीने को झेलम चिनाब का नीर दिया
जिससे हम भाईचारा निभाते रहे
उसने ही घाव कई गंभीर दिया
हम बुद्ध श्रीराम के पैग़म्बर
उनके नस्लों मे आतंक का खून बहे
हमारा ध्येय शिक्षा और विकास का
वो जिहाद हो अपना जुनून कहे
वो भूल गया जंग सैतालीस की
और घमंड चूर हुआ था जब इकहत्तर मे
जुलाई निन्यानबे मे फिर खाई थी मुँह की
इज़्ज़त नीलाम कर बैठे थे जब घर मे
फिर भी सदैव 'पाक' धरा से
उसने नापाक ही काम किया
हम उबरे भी नहीं थे छब्बीस ग्यारह से
फिर 'उरी' की हृदय विदारक कांड को अंजाम दिया
अब इस बार ग़र हुआ युद्ध तो
ना मंजूर आत्मसमर्पण, सिर्फ नर संहार होगा
कल तक सिर्फ POK की करते थे पहल
इस बार पूरे पाक पे अपना अधिकार होगा ||
जय हिंद
जय हिंद की सेना