Thursday, July 24, 2025
बेबस सच....
कौडियों के दाम जब बिक रहे ज़ज्बात ग़र
कैद खाना सा लगे जब स्वयं का ही घर
फिर किस जगह जाकर मिले कतरा भर सुकून
जब आंख मूँदते ही सताये भविष्य का डर
जब बिन विषधर के ज़ुबां उगलने लगे ज़हर
शब्द जब बन जाएँ तीर, और ढाल रहे बेअसर
फिर क्यों न टूटे कोई, जैसे पतझड़ में पत्ता
जब जिस्म बेच फिर भी चूल्हा न जले घर का अगर
मजबूरियों का फंदा तभी घोटता है साँस को
जब झूठ का शोर दबा दे सच की आवाज़ को
कौन करेगा बेवजह इच्छाओं का तर्पण यूँही
कुछ तो रोक रहा होगा हौसलों के परवाज को
किसका करता है मन त्यागना जहान को,
मुफलिसी छीन लेती है ख्वाब और अरमान को।
जब भीतर ही बसी हो बेचैनी हर घड़ी,
तो मौत भी लगे राहत फिर थके इंसान को।|
Sunday, July 20, 2025
"मैं और तुम — एक अधूरी पूर्णता"...
मैं हूँ खुली किताब सा तेरे लिए
तुम मेरे लिए एक पहेली हो
मै वीरान कोई मकान पुराना
तुम एक अलीशान हवेली हो
मैं बंजर जमीं का टुकड़ा सा
तुम खेत खुले हरियाली हो
मै मुरझा एक टूटा पत्ता सा
तुम कलियो की लाली हो
मैं बूंद बूंद बहता पानी
तुम सागर अपरम्पार हो
मै धरा का एक हिस्सा मात्र
तुम सारा ही संसार हो
तुमसे ही हर रिश्ता है जग मे
मैं उस रिश्ते की डोर हूं
तुम शीतल चांद हो गगन की
मैं तुमको तकता चकोर हूँ
मैं भोर का हूँ एक डूबता तारा
तुम प्रकाश दिनकर के हो
मैं एक अभिशाप सा हूँ धरती पर
तुम वरदान ईश्वर के हो
मैं सूनी राहों का एक मुसाफ़िर,
तुम मंज़िलों की कहानी हो।
मैं टूटी-बिखरी सी लकीर,
तुम किस्मत की निशानी हो।
मैं धूप की जलती छाया हूँ,
तुम सावन की रिमझिम बूँदें हो।
मैं अधूरी कोई आरज़ू,
तुम ख़्वाबों की सौगंधें हो।
मैं समय की धूल में खोया पल,
तुम कालचक्र की धुरी हो।
मैं एक अधूरा सा अध्याय,
तुम इक सदी पूरी हो।
मैं एक दबी चीख़ सा मौन,
तुम शंखनाद की वाणी हो।
मैं साधारण सी परछाईं,
तुम दिव्य ज्योति-कल्याणी हो।
मैं एक प्रश्न बनकर रह गया,
तुम हर उत्तर की धार हो।
मैं बस एक झलक भर हूँ,
तुम दृश्य सम्पूर्ण संसार हो।
Friday, July 11, 2025
छलावा : The Beautiful illusion
अति ऐतबार भी रिश्तों को अक्सर डूबा देता है
लगी हो आग जिंदगी में तो पत्ता- पत्ता हवा देता है
लिहाज़ रखते- रखते रिश्ते का बेहिसाब लुटे हम
ज़ख्म नासूर बना हो तो मरहम भी सजा देता है
ख्याल आया है फिर ख्वाहिशों में रहने वाले का
और याद भी आया है तिरस्कार, झूठे हवाले का
हमें तो जूठन भी लज़ीज़ लगा करती थी उसकी
देना पड़ा हिसाब उसे ही एक -एक निवाले का
पाया था उसे अपना सबकुछ गवारा करके
हमीं से ही बैठा है नासमझ किनारा करके
उससे बिछड़ने का ख़्याल भी बिखरा देता था हमें
चल दिया है आज हमें वह बेसहारा करके
डूबना ही गर मुकद्दर है, तो डूबा ले पानी
हम तो चुल्लू में डूबने से हो बैठे हैं नामी
उसकी तो निगाहें भी काफ़ी थीं हमें डुबाने को...
जाने क्यों झूठ की उसे लानी पड़ी होगी सुनामी
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हया भी कोई चीज होती है अधोवस्त्र एक सीमा तक ही ठीक होती है संस्कार नहीं कहते तुम नुमाइश करो जिस्म की पूर्ण परिधान आद्य नहीं तहजीब होती है ...
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मैं मिलावटी रिश्तों का धंधा नहीं करता बेवजह किसी को शर्मिदा नहीं करता मैं भलीभाँति वाकिफ हूँ अपने कर्मों से तभी गंगा मे उतर कर उसे गंदा...

